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________________ देववंदन जाय अर्थसहित. ४३ वंति चे आई, जावंत केवि साहु ने जयबीय राय सेवा प्रानव मखंमा लगें ए त्रण (पणि दासु के० ) प्रणीधानने विषे जालवा. ए रीतें ए नव सूत्रांना अक्षरो एकता करियें. त्यारे (अ डुरुत के ) श्रधिरुक्त एटले बीजी वार प्रण न चरखा एवा ( वन्ना के ) वर्ण एटले अक्षर ते सर्व मलो ( सोलसयसीयाला के० ) सोलों ने सुरु तालीश थाय ॥ २७ ॥ हवे पदसंख्या कहे बे. • मवीस सो नुव बत्तीस तित्तीसा, तिचत्त ल वीसपया || मंगल इरिया सक्क, वया इसु इगसीइ सयं ॥ २ए ॥ अर्थः- नवकारनां (नव के० ) नव पद बे, इ रियावहिनां (बत्तीस के० ) बत्रीश पद, नमोबु एनां (तित्तीसा के ) तेत्री पद, अरिहंतचेइ याांना (तिचत्त के० ) तालीश पद, लोगस्सनां ( श्रमवीस के० ) अधावीश पद, पुरकरवरदीनां ( सोल के० ) सोल पद, साबुदानां (वी
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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