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________________ '४२ देववंदन नाष्य अर्थसहित. इस नवकारखमासण,इरिअ सकता दंमेसु ॥ पणिहाणेसु अ अउरु, तवन्नसो लसय सीयाला ॥२७॥ ___ अर्थः-(अ के) ए पूर्व कह्या जे अकर ते अनुक्रमें अमशठ अकर (नवकार के०) नव कारने विषे जाणवा, अभावीश अक्षर (खमासण के) खमासमणने विषे जाणवा, तथा एकशो नवा' अक्षर (रिय के०) शरिया वहियाना गमि कानस्सग्गं लगें जाणवा. (१५००) अक्षर (सकल आश् दंमेसु के०) शक्रस्तवादिक पांच दमकने विषे अनुक्रमें जाणवा. तेमां नमुजुरांना सवे त्रिविहेणवंदामि लगें एड, तथा अरिहंतचे इयाणंना अप्पाणं वोसिरामि लगें शए, तथा लोगस्सना सवलोए लगें १६०, तथा पुस्करवरदी ना सुअस्सन्नगवन लगें १६, तथा सिहाग बु ज्ञाणंना वेआवञ्चगराणं, संतिगराणं, सम्मति समाहिगराणं लगें १ए, ए सर्व मली पांच दंग कना १२०० अदर थया. तथा १५२ अक्षर जा
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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