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________________ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. ३११ स्फुटे) अति प्रगट ( सत्यपि ) तां पण (आ स्मा) आत्मा-जीव (न) नथी, (पुण्यं) पुण्य (न) नथी, (नवः) जन्म (न) नश्री तथा (पापं ) पाप (न) नथी. (श्यम् ) एवो (वि टानां) नास्तिक लोकोनी (कटुगीः) कटु वाणी (अपि ) पण (मया) में (कर्णे) कर्णने विषे (अधारि) धारण करी. माटे (मां) मने (धिक) धिक्कार ॥१७॥ न देवपूजा न च पात्रपूजा, न श्राध्ध र्मश्च न साधुधर्मः । लब्ध्वापि मानुष्यमिदं 'समस्तं, कृतं मयारण्यविलापतुल्यम्॥१॥ अर्थः-(मया) में (देवपूजा) देवनी पूजा (न) न करी, (च) वली (पात्रपूजा) पात्र नी पूजा (न) न करी (श्राइ धर्मः) श्रावकनो धर्म (न) न पाल्यो. (च) वली (साधुधर्मः) साधुनो धर्म (न) न पाल्यो, (६) आ (मा नुष्यं) मनुष्य नव (लब्ध्वा) पामीने (अपि) पण (समस्तं ) सर्व (अरण्यविलापतुल्यं) श्र
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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