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________________ ३१७ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. (वृथा ) फोगट (कर्तुं ) करवाने (अवांनि ) वांग्युं ते सर्व (नाथ) हे नाथ! (मे) मारो ( मतिनमः ) मतिनो विनम डे ( हि ) निश्चे. विमुच्य दृग्लक्ष्यगतं नवंतं, ध्याता मया मढधिया हदन्तः । कटाक्षवदोजग जीरनानी, कटीतयीयाः सुदृशां विलासाः ___ अर्थः-( मूढधिया ) मूढ बुहिवाळा (मया ) में (दृग्लक्ष्यगतं ) दृष्टि लक्ष्यमा आवेला एवा (नवन्तं ) आपने (विमुच्य ) मूकीने (हृदन्तः) हृदयमां ( सुदृशां) स्त्रीयोना (कटाक्षवदोजग जीरनानीकटीतटीयाः) कटाक, स्तन, गनीर नानी तथा कटी तटना ( विलासाः) विलासोनुं (ध्याताः) ध्यान कयु . ॥१३॥ लोलेक्षणावत्र निरीक्षणेन, यो मानसे रागलवो विलग्नः। न शुधसिधांतपयोधि मध्ये धौतोऽप्पगातारक कारणं किम् १४ अर्थः-(लोलेकणावक्त्रनिरीक्षणेन ) चपल नेत्रवाळी स्त्रीयोनां मुख जोवानी (मानसे)
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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