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________________ ३७ श्री उपदेशरत्नकोष, ऊइ परो। किऊइ न राग दोसो निति ऊइ तेण संसारो ॥ २४॥ अर्थः-(परमप्पा) परमात्मानुं (झाऊइ) ध्यान करीये (अप्पसमायो) आपणा आत्मा सामान (परो) परने (गणिज्जर) गणीये. (राग दोसो) राग अने क्षेष (न किज्जइ) न करीये. (तेण) तेथी करीने (संसारो) संसार (मिनिज्ज) बेदीये. ॥ २४॥ नवएसरयणमालं जो एवं उवइ सुटु निअकंठे । सो नर सिवसुहलहीवन यले रम सहाई ॥२५॥ अर्थः-(एवं ) ए प्रकारे (जो) जे माणस (नवएसरयणमालं) उपदेश रुप रत्ननी माला ने (सु) सारी रीते (निअकंठे) पोताना के उने विषे ( ग्वा) स्थापन करे डे. (सो) ते (नर ) माणस ( सिवसुहलबीबछयले ) शिव सुख रुपी लक्ष्मीना वक्षःस्थलने विषे (सगई ) स्वेवा श्री (रम ) रमे . ॥२५॥ THEH
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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