SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नपदेशरत्नकोष. ३०७ ऊइ बहुरयणा जेणिमा पुहवी ॥३॥ ___ अर्थः-(को वि) कोईने पण (न अवम बिऊर) अपमान न करीये (य) वली (निश्र एहिं) पोताना (गुणेहिं) गुणोए करीने (न गविऊ) गर्व न करीये (विम्हन) विस्मय (न वहिऊर) न वहन करीये (जे) जे कारण माटे (श्मा ) पा (पुहंची ) पृथ्वी (बहुरयसा) बहु रत्नवाली . ॥२२॥ ____ आरंनिऊ लहुअं किऊ कऊम हंतमवि पन्ना ॥ न य नक्क रिसो किऊ सप्तश् गुरुअत्तणं जेण ॥ २३ ॥ अर्थः-प्रथम (लहुअं) नानुं काम (आरं निऊइ) प्रारंन करीये (पहा) पीथी (क ज्जमहंतं) मोटुं कार्य (अवि) पण (किज्ज ६) करीये (य) वली (नक्क रिसो) उत्कर्ष (न किज्ज) न करीये ( जेण) जेथी (गु रुअत्तणं ) गुरुत्व-मोटाई (खप्र२)पामीये ॥२३॥ झाश्श् परमप्पा अप्पसमाणो गणि
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy