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________________ पच्चरूखाण नाष्य अर्थसहित. २६१ दिक, उत्तराध्ययन योगने विषे आचारांग मध्यगत सप्तसप्तकाध्ययनने विषे चमरोद्देशक अनुज्ञा या वत् नगवतीयोगने विषे न कल्पे, बीजा सर्व योगमध्ये कल्पे. अने पढोगरी, फंकरां, नकलधुं, वाशी करं ब, तिलवटी, कुल्लर, निवीयातां, विगइ, गांठीया ना घारा, दलिया, गुंदविना मगीयादि, औषधा दि, मोदक, पेटक, खंमा, सितावर, सोलां, वासी, गुमपाक, गुंदपाक, वगर तल्यां कांकरियां, अनु त्कालित इक्षुरस,दिनत्रयावधि प्रसूत गोदुग्ध, ब लहट्टी, अंगाराथी उतारी प्राज्यादि मिश्रित खी चमी तथा सेवश्का पाउला दिवसनी पचावेली, तिलवटी, पर्पटकादि,गुमादिके मिश्रित न करेली तिलवटी, इत्यादिक नीवीयातां श्रीआवश्यक, द शवैकालिक,नत्तराध्ययनादिसर्व योगने विषेप्रायः कल्पे. एवो विचार प्रसंगथी जाणवा माटे ल ख्यो रे ॥३५॥
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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