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________________ पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. १५ दे करी लश्ये अथवा आहारादिक जे कीधां दोय ते सर्व तेना स्वादमां विनाश पामे, लयलीन थाय ते स्वादिम कहीये तेमां (सुंडिके) सूं उ, (जीर के) जीरुं, (अजमाई के ) अज मादिक, आदि शब्दश्रकी पीपर, मरिच, हरमे, बेहेमां, आमलां, मरी, पीपलीमूल, पीपर, अज मोद, आजो, काजो, काथो, कुलिंजर, कसेलो, कयसेलियो, मोथ, जेठीमध, पुष्करमूल,एलची, वाबची, चिणिकबाब, कर्पूर, तज, तमालपत्र, नागकेसर, केशर, जायफल, लविंग, हिंगुलाष्ट क, हिंगुत्रेवीसो, संचल, सैंधव, यवखार, खयर सार, कोठवली, गोली सर्व जातिनी अशनादि मां न चले तेवी जाणवी, सर्व जातिनां दातण, तुलसी पत्र, श्रीपत्र, खार, सया, मेथी, गोमू त्रादिकना कीधा अनमेलादिकनी गोलीयो, चि त्रो, पिंमार्थ, कोइएक तो पिंमार्थने खजुर कहे डे. परंतु ग्रंथांतरें एने जे सूरणादि कंदनां खार चूंदां करे ने, तेने कहे ले. कर्पूर, कचूरो, त्रिगम, पंच पटोल, बिमलवण, इत्यादिक अनेक जाति
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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