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________________ २० देववंदन नाष्य अर्थसहित. पणानी अवस्थायें नाववी, कारण के सिपणुं जे, ते रूपथकी अतीत मे, माटे सिहरूपपणुं नावतां रूपातीत नावना कहीये. ए (चेव के०) निश्चे (तस्सबो के ) ते पिंमस्थादिक त्रण अव स्थानो अर्थ जाणवो ॥११॥ ॥ हवे ए त्रणे अवस्था क्या क्या नाववी ? तेनां गम कहे . सहवणञ्चगेहिं उनम, बवन्त्र पमिहार गेहिं केवलियं ॥ पलियं कुस्सग्गेहिय, जिणस्स नाविऊ सिद्धत्तं ।। १ ।। अर्थः-(एडवणञ्चगोहिं के) स्नपनार्चकैः एट ले न्हवण, पखाल, अर्चादि पूजाना अवसरे, पूजा करनारा पूजक पुरुषोयें (जिएस्स के७) श्रीजिने श्वरनी (उनमा के०)द्मस्थावस्थाने नाववी, ते बद्मस्थावस्थाना त्रणनेद, एक जन्मावस्था, बीजी राज्यावस्था अनेत्रीजी श्रमणावस्था, तेमां प्रभुने न्हवण अादिक प्रदालन करतां जन्मा वस्था भाववी, अने मेरुपर्वतनी उपर जे जन्म
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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