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________________ हिंदी-भाव सहित ( सुखान्वेषण )। ६५ जब वह आवेगा तभी हम उपाय करेंगे, कितनी बडी भूल है ! क्या ठीक उस समय यत्न करनेसे कुछ भी होगा ? आग लग जानेपर कुआ खोदना क्या कुछ भी उपयोगी पड सकता है ? यत्न भी जो तुम करो वह शरीर रक्षार्थ नहीं, किंतु आगे शरीरका संबंध न रहकर निरतिशय सुखकी प्राप्ति हो इसलिये करो । शरीरकी तो हजार रक्षा करनेपर भी वह नहीं रहेगा यह निश्चय हो चुका है । इसलिये, असामवायिकं मृत्योरेकमालोक्य कञ्चन् । देशं कालं विधि हेतुं निश्चिन्ताः सन्तु जन्तवः ॥७९॥ अर्थः-तुम ऐसे एक किसी देशमें जाकर निश्चित वास करो जहां मृत्युका कुछ भी संबंध न हो। ऐसा कोई एक काल देखो कि जिसमें मृत्यु न आसकता हो। कोई एक ऐसा ढंग सोधो जिस तरह चलनेसे मृत्यु आक्रमण न करसकै। कोई एक कारण ऐसा मिलाओ कि जिसके अवलम्बनसे मृत्युकी दाद न लगसकती हो। यह सब जब तुम करलो तब तुझे निश्चिंत होना चाहिये । परंतु यह ध्यान रक्खो कि जबतक तुमने शरीरका संबंध छोडा नहीं है तबतक ऐसा देश, काल, विधि तथा हेतु कभी नहीं मिलनेबाला है। ऐसे देशादिक तो तुझें तभी मिलेंगे जब कि तुम शरीरसे स्नेह हटाकर वीतराग होकर अध्यात्म चिंतवन करने लगोगे । क्योंकि, ऐसा संबंध संसारमें तो कहींपर भी नहीं है; एकमात्र है तो संसार छूटकर होनेवाली चिदानंद दशाके प्राप्त होनेपर है । इसलिये शरीररक्षाके प्रयत्नमें लगनेसे तुमारा मृत्युसे छुटकारा होना असंभव है । इसीलिये इस धुनको छोडकर आत्मकल्याण करनेके लिये तुझे यत्न करना चाहिये । स्त्रीको अनुपसेव्य दिखाते हैं:पिहितमहाघोरद्वारं न किं नरकापदा,मुपकृतवतो भूयः किं तेन चेदमपाकरोत् ।
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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