SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी-भाव सहित (शिकारकी बुराई )। २१ जान पडता है कि मृगया आदिक दुःखदाई ही हैं, केवल अपने मनके संकल्पमात्रसे उसमें प्रवृत्त हुए मनुष्यको सुखदाईसे भासते हैं। देखो, दुःख वही है जिससे शांतीका भंग होकर आकुलताकी वृद्धि हो तथा नीच कर्म समझ लोग जिसकी निंदा करते हों। शिकार खेलनेवाले जव शिकारमें लगते हैं तब उन्हें जैसे सहज मिलसकनेवाले तृण घास तथा अन्नकी प्राप्ति करनेमें उद्वेगरहित थोडासा प्रयत्न करना पडता है वैसे उद्वेगरहित थोडेसे प्रयत्नसे सफलता प्राप्त नहीं होती किंतुसहजशांत आत्मखभावके विपरीत क्रूरतासे भरा हुआ पूरा प्रयत्न करना पडता है । सहजशांत आत्मस्वभावका जितना जिस कार्यके करनेमें भंग हो उतना ही वहां दुःख तथा पाप समझना चाहिये। अन्नादिके मिलानेमें भी यदि किसीको क्रूरता अशांतीसे भरा हुआ उद्योग करना पडता हो तो वहां भी दुःख तथा पाप समझना ही चाहिये। परंतु अन्नादि प्रातिकेलिये उद्योग इच्छा रखनेपर शांतिपूर्वक भी होसकते हैं । इसलिये उन उद्योगों की अधिक बुराई नहीं की । किंतु मृगया ऐसी नहीं है, इसमें सदा शांतीका भंगकर क्रूरतापूर्ण आत्मविरुद्ध ही प्रवृत्ति करनी पड़ती है । इसीलिये इसका परित्याग करना सभी जगह अच्छा कहा है । सात्विक वृत्तीके मनुष्य इस कार्यमें कभी नहीं पडते । किंतु भील चाण्डालादि अबोध पामर मनुष्योंकी ही इसमें विशेष प्रवृत्ति दीख पडती है । इसलिये यह कार्य निंद्य तो अवश्य ही है। मृगया कर्म करनेवालोंकी और भी असीम निर्दयताः भीतमूर्तीर्गतत्राणा निर्दोषा देहवित्तिकाः । दन्तलग्नतृणा नन्ति मृगीरन्येषु का कथा ॥ २९ ॥ अर्थः-जिनका शरीर सदा भययुक्त रहता है, कोई भी जिनका रक्षक नहीं है, जो सर्वथा अपराधरहित हैं, शरीरके अतिरिक्त कुछ भी जिनके पास संपत्ति नहीं है, दातोंमें जिन्होंने तृण दवा रक्खे हैं ऐसी हरिणयोंको ही जब हिंसक लोग मार देते हैं तो दूसरे जीवोंमें तो वे दया करेंगे ही क्या ? जिनको अपने शौर्यका अभिमान होता है अथवा
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy