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________________ १९ विषयसूची. विषयनाम पृष्ठ. पंकि. रुपाय के विजयसे लाभ २०४-३ साधुओंके कषाय का स्थल २१६-१८ वीतरागताकी भावना २२३-७ बन्धन व मुक्ति के कारण व क्रम । . २२५-३ परदोषोंके देखने की मनाई २३१-१ देहसे स्नेह कैसे छूटै ? २३४..१ मोह हटानेवालोंका स्वरूप २३५-२१ ध्यानस्थित योगियों का स्वरूप २३७-१६ ध्यानका वास्तविक फल २४१-४ मुक्त जीवका स्वरूप २४२-१४ मुक्तिका सुख २४५-. उपसंहार २४५-१४ ग्रंथकारका परिचय २४६-१९ अन्त्य माल .... २४७-१ नोट:-चारो आराधनाओंका विषय आगे पीछे भी आया है । शुद्धिपत्र. शुद्ध. पृष्ठ. पंक्ति. १३-२० अशुद्ध. विषयविषमा. सकती शश्वदशुभां तु कोपि विषयविषमासकता शश्वदशुभैः तुकापि'. ४८-२६ १६९-१८ २०७-१२ २३८-१२ स्त्रयट्यत्तमो. स्त्रयुज्यत्तमो. १ पुत्रः सूनुरपत्यं स्यात्तक् तोकं चात्मजः प्रजाः ॥
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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