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________________ नारयत्तं च ॥१॥ केवलिगणहरह, पवळा तिलवबरं दाणं ॥ पवयण सुरी सुरत्तं, लोगंतिय देवसा मित्तं ॥॥ तायत्तीससुरत्तं, परमाहम्मिय जुयलमणुयत्तं॥संनिन्नसोय तह, पुवकरा हारय पुलायत्तं ॥३॥ मश्नाणाश्सुलझी, सुपत्तदाणं समाहिमरणत्तं ॥ चारण फुग महुसिप्पय, खीरासव खीणगणतं॥४॥ तिबयर तिपमिमा, तणु परिजोगाइकारणेवि पुणो॥ पुढवाश्य जावंमि वि, अजवजीवेहिं नो पत्तं ॥५॥चनदस रयणतंपि, पत्तं न पुणो विमाणसामित्तं ॥ सम्मत्त नाण संयम, तवा नावा न नावगे ॥६॥ अणुनवजुत्ता जत्ती, जीणाण साहम्मियाण वबा ॥ नय साहेश अनबो, संविग्गत्तं न सुप्परकं ॥७॥ जिणजणय जणणि जाया, जिणजरका जरकणी जुगपहाणा ॥ आयरियपया दसगं, परमल गुणढ मप्पत्तं ॥७॥ अणुबंध हेड सरूवा, तब अहिंसा तिहा जिणुदिहा ॥ दव्वेणय जावेणय, उहावि तेसिं न संपत्ता ॥ ए॥
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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