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________________ हणा य संघयणा ॥ सन्ना संगम कसा, य लेसिंदिय 5 समुग्धाया ॥३४४ ॥ दिही सण नाणे, जोगुवगो ववाय चवण ठि॥ पङत्ति किमाहारे, सन्निगई आगई वेए ॥३४५॥ तिरिया मणुया काया, तह गाबीया चनक्कगा चउरो ॥ देवा नेरश्या वा, अहारस नावरासी ॥३४६॥ एगा कोमी सत सहि, लरका सतहत्तरी सहस्साय ॥ दोय सया सोलहिया, श्रावलियाणं मुहुत्तंमि ॥ ३४७ ॥ पणसहि सहस पणसय, बत्तीसा ग मुहुत्त खुमनवा ॥ दोय सया बप्पमा, आवलिया एग खुमनवे ॥ ३४ ॥ मलहारि हेमसूरि, ण सोसलेसेण विरश्यं सम्मं ॥ संघयणि रयण मेयं, नंदउ जा वीरजिण तिथं ॥३४॥ ॥ इति श्री त्रैलोक्यदीपिका नामसंग्रहणीसंपुर्णा ॥ ॥ अथ श्री अलव्य कुलकम् लिख्यते ॥ जह अनविय जीवेडिं, न फासिया एव माश्या नावा ॥ इंदत्तमनुत्तरसुर, सिलायनर
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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