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________________ गोमय तश्या ॥ १० ॥ देवस्स सुश्रण उगवणं, आमलीकण पंझवाणं च ॥ इकारसी तवाई, परति गमण खण करणं ॥११॥ सह मासिब बम्मासियाई, पवदाण कन्नहलति ॥ हल जल घमदाणा, लोहणयदाणं विय मिछादिठीणं ॥१॥ कौमारि बार जत्तं, धम्म ववरील चित्तंमि ॥ असंजयणो याणा, अखयतईया अकत्तणायं ॥१३॥ संमविवाहो जिरिणि, अमावासाए विसेसन ॥ भूजं कुवाइ खणण, गोअरस हिंमण पियर हंताई ॥ १४ ॥ वायसबिमाल मार्पिमो, तरूरोवण पवित्तपन ॥ तालायर कहसवणं, गोधणमह इंदजालं च ॥१५॥ धम्मग्गिदय नट पि. बण च, पायकफुज्झ दरसणयं ॥ एवं लोअगूरू. णवि, नमणं दिश तावसाईणं ॥१६॥मूले सोसा जाए, बालेनवणं मि बंजगोहवणं ॥ तकह सवणं दाणं, गिहिगमणे नोयणोश्य ॥१७ ॥ एवं लोश्य गिळं, देवगयं गुरूगयंतु परिहरियं ॥ लोउत्तरे विवऊरं, परतिवं संगहियबिंबे ॥ १७॥जब जि
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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