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________________ १०० नमणाई॥ वहिजोसमदिही,तउत्तमेकंपि निबयत्रं ॥२॥ मंगल नाम गहणं, विणाय गाईण का पारंने ॥ ससि रोहिणी गेयाई, विणायग ववणं च विवाहे ॥ ३॥ बही पुश्रण माउणविणं, बीयाई चंद दसियं च॥ऽग्गाईणो वाईया, तोतलया गहाय महिमं च ॥४॥ चित्तमि माहनवमी, रविरह निरकमण सुरगहणाई॥होलीय पयाहिणं, पिंम पामण थावरे पूया ॥५॥ मि संकंति, पूजा रेवंत पंथ देवाण ॥ सिवरत्ति वह बारसी, खित्ते सीआइ अञ्चयं ॥६॥देवय सत्तमि नाग्गण. पंचमी मलगाइ माऊण ॥रवि ससिवारेसु तवो, कुदिवि गुत्ताई सुरपूला ॥७॥ नवरत्तासुतत् पूध माई, बुहाअमिरिंग होम च॥ सुन्निणिरूपिणिरंगिणि, पूंजाधय कंबलो माहे ॥७॥ काल तथा तिल, दऊदाणं मय जलंजली दाणं ॥ सावण चंदण बविं, गो पूजाइसु करस्सलेउ ॥ए ॥ अक्की गौरी जत्त च, सवति पियर पमिमा ॥उत्तरयण भूयाण, मग
SR No.022320
Book TitlePrakaran Ratnakar Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Nagardas Pragjibhai
PublisherMehta Nagardas Pragjibhai
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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