SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : तो राजाने अत्यन्त भूखे कुत्तों को उनकी तरफ छोड़ा। उन कुत्तों को आते हुए देख कर एक श्रेणिक के अतिरिक्त अन्य सब कुमार बिना भोजन किये ही खीर से भरे हुए हाथों सहित दौड़े। श्रेणिक कुमारने तो ज्यों ज्यों कुत्ते नजदिक आने लगे त्यों त्यों अपने भाइयों के थाल उनको देता देता अपने थाल की खीर खाने लगा। इस प्रकार उसने पूरा भोजन किया । इस वृत्तान्त को सुनकर राजाने अपने निन्नानवें कुमारों की प्रशंसा की और श्रेणिक की निन्दा करते हुए उसको कहा कि-तूने कुत्तों के साथ भोजन किया इस लिये तुझको धिक्कार हैं। ____एक समय और परीक्षा करने के लिये खाजा, लड्ड आदि एक टोकरे में भर कर, उसका ढक्कन बंद कर उस पर सील ( Seal) लगाई तथा मिट्टी के कोरे घड़े में पानी भर कर उस पर भी (Seal ) किया। फिर उन टोकरों और उन घड़ों को कुमारों को देकर राजाने कहा कि-तुम इन सीलों ( Seals ) को बिना तोड़े टोकरों में से पकवान खाओ और घड़ों में से पानी पीवो । ऐसा कह कर उनको ऐकान्त स्थल में रखा । सर्व कुमारों को भूख लगी किन्तु उनके खाने का कोई उपाय नहीं सूझ पड़ा । यह देख कर श्रेणिकने टोकरों को हिला हिला कर उनकी वांस की सलियों के छिद्रों में से पक्वान्न का भूका निकाल कर तथा घड़ो पर कपड़े डाल कर भीगे हुए वस्त्रों को निचोड़ निचोड़ कर
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy