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________________ : ३४८ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : आकार का हाथी बनवाना और फिर उस पर बैठ कर फिरना कि जिससे कोई तेरी आज्ञा का पालन करेगा । देवपालने वैसा ही किया तो दिव्य प्रभाव से वह मीट्टी का हाथी गंधहस्त के सहश मार्ग में चलने लगा जिसको देख कर सब लोग आश्चर्यचकित हो उसकी आज्ञा का पालन करने लगे । फिर देवपालने अपने पूर्व के स्वामी श्रेष्ठी को प्रधानपद प्रदान किया और नदी के किनारे झोपडी में स्थापित बिंब को लाकर गांव में एक बड़ा भव्य आसाद बनवा कर उस में स्थापन किया । उस जिनबिंब की त्रिकाल पूजा कर देवपाल राजाने जिनशासन की प्रभावना की । वह देवपाल राजा पूर्व के सिंह राजा की पुत्री साथ विवाह कर भोगविलास करने लगा। एक बार वह रानी राजा के साथ अपने महल के झरोखें में खड़ी थी कि उस समय एक वृद्ध अपने सिर पर काष्ठ का बोझा लेकर उसी ओर हो कर निकला जिसको देख कर रानी तुरन्त ही मूच्छित हो गई । राजाने शीतोपचारद्वारा उसको सचेत किया तो उसने उस वृद्ध को महल में बुलाकर उसके समक्ष अपना सारा वृत्तान्त राजा को कह सुनाया कि - हे स्वामी ! मैं पूर्व भव में इस पुरुष की स्त्री थी । उस समय मैंने तुम जिस बिंब की पूजा करते हो उसी बिंब की पूजा की थी इसलिये उस पूजा के प्रभाव से इस जन्म में मैं राजा की
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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