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________________ व्याख्यान ३७ : : ३४७ः किसी देवने कहा कि-हे भद्र ! मैं तेरे पर प्रसन्न हुआ है अतः कोई वरदान मांग । इस पर देवपालने उत्तर दिया कि-हे देव ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो तो मुझे इस नगर का राज्य प्रदान कीजिये । यह सुन कर देवने कहा किआज से सातवें रोज तुझे अवश्य राज्य मीलेगा । ऐसा कह कर देव अदृश्य हो गया और देवपालने भी अपने स्थान को लौट कर भोजन किया। सातवें दिन उस नगर का राजा बिना पुत्र के मर गया इस से प्रधान आदिने पंच दिव्य प्रकट किये । वे घूमते घूमते जंगल में जहां देवपाल गायें चरा रहा था वहां पहुंचे किहथिनीने देवपाल पर कलश ढोला इस से प्रधानोंने उसका राज्याभिषेक कर उसे गादी पर बिठाया। वह देवपाल राजा हो गया परन्तु वह प्रथम चाकर था इस से उसकी आज्ञा कोई नहीं मानता था इसलिये अत्यन्त दुखित होकर उसने राज्य प्रदान करनेवाले देव का आह्वाहन किया और उसके प्रत्यक्ष होने पर उसने कहा कि हे देव ! मुझे आपका प्रदान किया हुआ राज्य नहीं चाहिये, मुझे तो वापस मेरा चाकरपन ही लौटा दीजिये क्योंकि जिस राज्य में मेरी कोई आज्ञा नहीं मानता, उस राज्य से मुझे क्या प्रयोजन ? यह सुन कर देवने कहा कि हे भद्र ! तू मैं बतलाऊं वह उपाय कर कि-जिससे सब कोई तेरी आज्ञा का पालन करेगें । तुं कुम्हार से मीट्टी का एक बड़े हाथी के
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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