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________________ व्याख्यान १५..... . : १४५ : पूर्व के किसी अशुभ कर्म के उदय से मेरे सिर पर यह कलंक आवेगा" ऐसा विचार कर उस उपद्रव की शान्ति के लिये उसने फिर कायोत्सर्ग किया। प्रातःकाल गुणसुन्दरी की माता बंधुश्री यह जानने की उत्सुक हो कर कि रात्रि को क्या हुआ सती गुणसुन्दरी के घर पर आई। वहां गुणसुन्दरी को ही मरी हुई देख कर उसने चिल्ला कर राजासे पुकार किया कि "हे राजा! मेरी पुत्री को उसकी शोक्य जयसेनाने शोक्यपन के द्वेष से मार डाला है।" यह सुन कर राजाने क्रोधित हो कर जयसेना को अपने पास बुला कर पूछा लेकिन जयसेनाने कुछ भी उत्तर नहीं दिया । इसी बीच में शासनदेवी की प्रेरणा से वह योगी ही नगर में पुकारता पुकारता अकस्मात् राजसभा में आया और अपना भयंकर रूप प्रकट कर बोला कि "निर्दोष जयसेना को छोड़ कर दुष्ट गुणसुन्दरी को मैंने ही महाविद्याद्वारा मरवाया है।" ऐसा कह कर उसके विषय में सब वृत्तान्त राजा से निवेदित किया । उस समय शासनदेवताने भी जयसेना पर पुष्पवृष्टि की। राजाने बंधुश्री का ही दुष्ट होना निश्चय कर उसको निर्वासित कर दिया। तत्पश्चात् राजाने जयसेना से पूछा कि " हे गुणशाली बहिन ! संसार में कौनसा धर्म सर्वश्रेष्ठ है ?." जयसेनाने उत्तर दिया कि " स्याद्वादयुक्त जैन धर्म के अतिरिक्त अन्य १०
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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