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________________ ११ जो के प्रस्तुत ग्रन्थनुं संपादन, तेवी रीतिये सफल तेमज संतोषप्रद बन्युं छे, एम कहेवानी धीट्ठाइ हुं नज करी शकुं. कारण के मारी अल्पशक्ति अने खामीओनो मने ख्याल छे. छतांये हुं कहीश के - सामान्यरीतिये आ ग्रन्थना संपादनसंशोधनकार्यमां शक्ति अने स्थिति मूजबनी खबरदारी राखवामां आवी छे. आवश्यक टीप्पणो गुजराती भाषामां परिशिष्ट तरिके रजू करवामां आव्यां छे तेमज बीजी पण शक्य काळजी रखाइ छे. अपूर्णताओ जरुर छे, क्षतिओ नजरे चढे तेवी छे, जरुरी भाषाटीप्पणी करवा पडतां मूकाया छे. आ बधुंये हुं जाणु छं, पण शक्तिमूजब में आमां प्रयत्न कर्यो छे. मारा आ प्रयत्नमां मने अवसरे अवसरे सहाय आपनार मुनिराज श्री सुबुद्धिविजयजी महाराजश्रीने मारे आ प्रसंगे अवश्य याद करवा जोइए. वली मारा परमोपकारी आराध्यपाद परमगुरुदेवोपूज्यपाद परमोपास्य सुगृहीतनामधेय सिद्धान्तमहोदधि परम गुरुदेव आचार्य महाराज श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजा तेमज पूज्यपाद परमशासनप्रभावक व्याख्यानवाच - स्पति गुरुदेव आचार्य महाराज श्रीमद् विजयरामचन्द्र
SR No.022310
Book TitleSwadhyay Dohanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvijay Muni
PublisherVijaydansuri Granthmala
Publication Year1940
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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