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________________ एक बार किसी सेठ ने बहुत ही सुन्दर आलीशान भवन बनवाया। भवन में सुन्दर कलाकृतियाँ बनवाईं। उसके बाद सम्पूर्ण भवन में सुन्दर व कीमती रंग कराने का निश्चय किया। बुद्धिमान् और कुशल चित्रकारों को बुलाया गया। सुप्रसिद्ध चित्रकार अपने-अपने काम में लग गए। चित्रकारों की चित्रकला से उस भवन की शोभा में चार चांद लगने लगे। सेठ भी उस कला को देखने के लिए आया। सुन्दर कला को देखकर मन ही मन मुस्कराने लगा। सेठ ने चित्रकारों को आदेश दिया कि 'इन दीवालों को ऐसे दिव्य रंगों से रंगा जाय कि ५० वर्ष तक इनकी शोभा में कोई फर्क न पड़े। सेठ यह बात कह ही रहे थे कि इस बीच एक दिव्य ज्ञानी महात्मा जो वहाँ से गुजर रहे थे, सेठ की यह बात सुनकर तनिक मुस्कराए। सेठ ने मुनि के हास्य को देखा। सेठ के दिल में शंका पैदा हुई। मुनि क्यों हँसे ? अन्त में वे सेठ मुनि के पास पहुँचे, उन्होंने मुनि को हँसी का कारण पूछा। सेठ के आग्रह पर मुनि ने कहा-'सेठजी ! आप भवन की शोभावृद्धि के लिए इतने प्रयत्नशील हो, परन्तु प्रापका जीवन तो मात्र ७ दिन का ही है फिर भी आप रंग की इतनी चिन्ता कर रहे हैं, यह जानकर मुझे हंसी आ गई।' मुनि की बात सुनकर सेठ चौंक गए। बस ; इस दुनिया में अधिकांश जीवों की यही स्थिति है । शान्त सुधारस विवेचन-१८७
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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