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________________ ब्रह्मव्रत-मङ्गीकुरु विमलं , बिभ्राणं गुण-समवायम् । उदितं गुरुवदनादुपदेशं , ____संगृहारण शुचिमिव रायम् ॥ शृणु० १०७ ॥ अर्थ-अनेक गुणों के समुदाय रूप निर्मल ब्रह्मचर्य व्रत को अंगीकार करो। गुरु के मुख से निकले अत्यन्त पवित्र रत्न के निधान रूप उपदेशों का संग्रह करो ॥ १०७ ।। विवेचन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार करो हे प्रिय आत्मन् ! अनेक गुणों की आधारशिला स्वरूप ब्रह्मचर्य व्रत को तू अंगीकार कर। इस व्रत की महिमा अपरम्पार है। कहा भी है ए व्रत जग मां दोवो मेरे प्यारे । ए व्रत जग मां दीवो ॥ विशुद्ध ब्रह्मचर्य के पालन से आत्मा की सुषुप्त शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं। ब्रह्मचर्य अर्थात् स्त्री-संग तथा विषयवासना आदि का सर्वथा त्याग तथा आत्मस्वभाव में रमण करना। ब्रह्मचर्य से आत्मा पवित्र बनती है। दिमाग में अशुभ विचारों का आवागमन रुकता है। शरीर का प्रारोग्य बढ़ता है। चित्त प्रसन्न और स्थिर बनता है, इत्यादि अनेक लाभों की प्राप्ति ब्रह्मचर्यपालन से होती है । शान्त सुधारस विवेचन-२६८
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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