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________________ अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका । युक्त है इस काल में सांचा मोक्षमार्गकी विरलता है तातें शिथिलाचारीनिकै सांचा मोक्षमार्ग कहां तै होय ऐसा जाननां । ४७ अब इहां कछूक द्वादशांगसूत्र तथा अंगवाह्यश्रुतका वर्णन लिखिये है;—तहां तीर्थकरके मुखतैं उपजी जो सर्व भाषामय दिव्यध्वनि तांकूं सुनकर च्यार ज्ञान सप्तऋद्धिके घारक गणघर देवनि अक्षर पदमय सूत्ररचना करी । तहां सूत्रदोय प्रकार है; - एक अंग दूसरा अंगवाद्य । तिनके अपुनरुक्त अक्षरनिकी संख्या वीस अंकनि प्रमाण है ते अंक एक घाटि इकट्ठी प्रमाण हैं । ते अंक - १८४४६७४४०७३७०९५५१६१५ एते अक्षर हैं । तिनिके पद करिये तब एक मध्यपदके अक्षर सौलास चौतीस कोडि तियासीलाख सात हजार आठसै अठ्यासी कहे हैं तिनिका भाग दिये एकसौ वारह कोडि तियासीलाख अठावन हजार पांच इतनें पावैं येते पदहैं ते तौ बारह अंगरूप सूत्रके पद हैं। अर अवशेष वीस अंकनिमैं अक्षर रहे ते अंगवाह्य सूत्र कहिये, ते आठ कोडि एक लाख आठ हजार एकसौ पिचहत्तर अक्षर हैं तिनि अक्षरनिमैं चौदह प्रकीर्णकरूप सूत्ररचना है । अब इन द्वादशांगरूप सूत्ररचनाके नाम अर पद संख्या लिखिए है; - तहां प्रथम अंग आचारांग है तामैं मुनीश्वर निके आचारका निरूपण है ताके पद अठारह हजार हैं । बहुरि दूसरा सूत्रकृत अंग है ताविषै ज्ञानका विनय आदिक अथवा धर्मक्रिया मैं स्वमत परमतकी क्रियाका विशेषका निरूपण है याके पद छत्तीस हजार हैं । बहुरि तीसरा स्थान अंग है ताविषै पदार्थनिका एक आदि स्थाननिका निरूपण है जैसे जीव सामान्य करि एकप्रकार विशेषकरि दोय प्रकार तीन प्रकार इत्यादि ऐसैं स्थान कहे हैं याके पद वियालीस हजार हैं । बहुरि चौथा सममाय अंग है याविषै जीवादिक छह द्रव्यनिका द्रव्य क्षेत्र
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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