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________________ अष्टपाहुडभाषा वचनिका । आरौं इनि ज्ञान आदिकै उत्तरोत्तर सारपणां कहैं हैं;गाथा--णाणं णरस्स सारो सारो वि णरस्स होइ सम्मत्तं । सम्मत्ताओ चरणं चरणाओ होइ णिव्वाणं ॥ ३१ ।। संस्कृत--ज्ञानं नरस्य सारः सारः अपि नरस्य भवति सम्यक्त्वम् सम्यक्त्वात् चरणं चरणात् भवति निर्वाणम् ॥३१॥ अर्थ-प्रथम तौ या पुरुष के ज्ञान सार है जाते ज्ञान सर्व हेय उपादेय जानें जाय हैं, बहुरि या पुरुषकै सम्यक्त्व निश्चय करि सार है जाते सम्यक्त्व विना ज्ञान मिथ्या नाम पावै है, सम्यक्त्वनै चारित्र होय है जातै सम्यक्त्व विना चारित्र भी मिथ्याही है, बहुरि चारित्र तैं निवाण होय है ॥ ___ भावार्थ-चारित्र नैं निर्वाण होय है अर चारित्र ज्ञानपूर्वक सत्यार्थ होय है अर ज्ञान सम्यक्त्वपूर्वक सत्यार्थ होय है ऐसे विचार किये सम्यक्त्व कै सारपणां आया । यातैं पहलै तौ सम्यक्त्व सारहै पीॐ ज्ञान चारित्र सार हैं । पहलें ज्ञान पदार्थनिळू जानिये हैं या पहलें ज्ञान सार है तौऊ सम्यक्त्व विना ताकाभी सारपणां नाही, ऐसा जाननां ॥३२॥ __ आगैं इसही अर्थकू दृढ़ करैं हैं; -- गाथा—णाणम्मि दंसणम्मि य तवेग चरिएण सम्मसहिएण। चोण्हं पि समाजोगे सिद्धाजीवाण सन्देहो ॥३२॥ संस्कृत-ज्ञाने दर्शनेच तपसा चारित्रेण सम्यक्त्वसहितेन । चतुर्णामपि समायोगे सिद्धा जीवा न सन्देहः ॥३१॥ · अर्थ-ज्ञान होते दर्शन होतें सम्यक्त्वसहित तपकरि चारित्र कार इनि च्यारनिका समायोग होते जीव सिद्ध भये हैं, यामैं संदेह नाही है ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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