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अष्टपाहुडभाषा वचनिका ।
३१ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm चेतनास्वरूप है सो चेतना दर्शनज्ञानमयी है; पुद्गल स्पर्श रस गंध वर्ण गुणमयी मूर्तीक है, याके परमाणु अर स्कंध ऐसैं दोय भेद हैं; बहुरि स्कंधके भेद शब्द बंध सूक्ष्म स्थूल संस्थान भेद तम छाया आतप उद्योत इत्यादि अनेक प्रकार है; धर्मद्रव्य प्रधर्मद्रव्य आकाशद्रव्य ये एक एक हैं अमूर्तीक हैं निष्किय है, अर कालाणुअसंख्यात द्रव्य है । काल विना पांच द्रव्यनिकै बहुप्रदेशीपणां है यातें पांच अस्तिकाय हैं काल द्रव्य बहुप्रदेशी नांहीं तातें अस्तिकाय नाहीं; इत्यादिक इनिका स्वरूप तत्त्वार्थसूत्रकी टीकातें जाननां । बहुरि एक तौ जीव पदार्थ है अर अजीव पदार्थ पांच हैं, बहुरि जीवकै कर्मबंध योग्य पुद्गल होय सो आश्रव है बहुरि कर्म बंधै सो बंध है, वहुरि आश्रव रुकै सो संवर है, कर्मबंध झड़े सो निर्जरा है संपूर्ण कर्मका नाश होय सो मोक्ष है जीवनिकू सुखका निमित्त सो पुण्य है, बहुरि दुःखका निमित्त सो पाप है; ऐसैं सप्त तत्व नव पदार्थ हैं । इनिका आगमकै अनुसार स्वरूप जानि श्रद्धान करै सो सम्यग्दृष्टी होय है ॥ १९ ॥ ___ आगें व्यवहार निश्चय करि सम्यक्त्व दोय प्रकार करि करें हैं;
गाथा-जीवादी सद्दहणं सम्मत्त जिणवरेहिं पण्णत्तं ।
ववहारा णिच्छयदो अप्पाणं हवइ सम्मत्तं ॥ २० ॥ संस्कृत-जीवादीनां श्रद्धानं सम्यक्त्वं जिनवरैः प्रज्ञप्तम् ।
व्यवहारात् निश्चयतः आत्मैव भवति सम्यक्त्वम् ॥ अर्थ-जीव आदि कहे ज पदार्थ तिनिका श्रद्धान सो तो व्यवहारसम्यक्त्व जिनभगवान कह्या हैं, बहुरि निश्चयनैं अपनां आत्माहीका श्रद्धान सो सम्यक्त्व है ॥ २० ॥