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________________ xmmmmmmmmmmmmmmmm अष्टपाहुडमें शीलपाहुडकी भाषावचनिका। ४०१ अंग यथास्थान सुन्दर पावते संतॆभी सर्व अंगनिमैं यहु शीलनामा अंग है सो उत्तम है, यह न होय तो सर्वही अंग शोभा न पावै, यह प्रसिद्ध है ॥ ___ भावार्थ-लोकविधैं प्राणी सर्वांगसुन्दर होय अर दुःशील होय तौ सर्व लोककै निंदाकरने योग्य होय ऐसैं लोकमैं भी शीलहीकी शोभा है तौ मोक्षमैं भी शीलही प्रधान कह्या है; जे ते सम्यग्दर्शनादिक मोक्षके अंग हैं ते शीलहीके परिवार हैं ऐसे पहिले कह आये हैं॥ __ आगैं कहै है—जो कुमतिकरि मूढ भये हैं ते विषयानमैं आसक्त हैं कुशीलहैं संसारमैं भ्रमैं हैं;गाथा-पुरिसेण वि सहियाए कुसमयमूढेहि विसयलोलेहिं । संसारे भमिदव्यं अरयघरट्टे व भूदेहिं ॥२६॥ संस्कृत-पुरुषेगापि सहितेन कुसमयमूढैः विषयलोलैः । संसारे भ्रमितव्यं अरहटघरहें इव भूतैः ॥२६॥ __ अर्थ-जे कुसमय कहिये कुमत तिनिकरि मूढ हैं सो ही अज्ञानी हैं बहुरि ते विषयनिवि. लोलुपी हैं आसक्त हैं ते संसारवि. भ्रमै हैं. कैसे भये भ्रमैं हैं—जैसैं अरहटविर्षे घड़ी भ्रमैं तैसैं भये भ्रमैं हैं तिनिकरि सहित अन्य पुरुषकै भी संसारवि. दुःखसहित भ्रमग होय है ___ भावार्थ-कुमती विषयासक्त मिथ्यादृष्टी आरतौ विषयानकू भले मांनि से हैं । केई कुमती ऐसेभी हैं जो ऐसैं कहैं हैं जो सुन्दर विषय सेवनेमैं ब्रह्म प्रसन्न होय है यह परमेश्वरकी बडी भक्ति है ऐसैं कहिकरि अत्यंत आसक्त होय से हैं, ऐसा ही उपदेश अन्यडूं देकारे विषयनिमैं लगावै है, ते आप तौ अरहटकी धडीकी ज्यौं संसारमैं भ्रमैं ही हैं तहां अनेकप्रकार दुःख भोग हैं परन्तु अन्य पुरुषकूभी तहां लगाय भ्रमा हैं तातै यह विषय सेवनां दुःखहीकै अर्थि है दुःखहीका कारण है, ऐसैं अ.व. २६
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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