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________________ अष्टपाहुड में मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका | ३६५ संसारके भ्रमणतैं रहित होय तेही अन्यकै संसारका भ्रमण मेटनेकूं कारण होय जैसैं जाकै धनादि वस्तु होय सो ही अन्यकूं धनादिक दे अर आप दरिद्री होय तब अन्यका दरिद्र कैसें मेटैं, ऐसें जाननां । ऐसैं जिनकं संसारके विघ्न दुःख मेटनें होय अर संसारका भ्रमणका दुःखरूप जन्म मरणतैं रहित होनां होय ते अरहंतादिक पंच परमेष्ठीका नाम मंत्र जपो, इनके स्वरूपका दर्शन स्मरण ध्यान करो, तातैं शुभ परिणाम होय पापका नाश होय, सर्व विघ्न टलैं परंपराकरि संसारका भ्रमण मिटै कर्मका नाश होय मुक्तिकी प्राप्ति होय, ऐसा जिनमतका उपदेश है सो भव्य जीवनिकै अंगीकार करने योग्य है । इहां कोई कहै - अन्यमत मैं ब्रह्मा विष्णु शिव आदिक इष्ट देव मानें हैं तिनिके विघ्न टलते देखिये हैं तथा तिनिके मतमैं राजादि बडे बडे पुरुष देखिये हैं तिनिके भी ते इष्ट है सो विघ्नादिकका मेटनेवाले हैं तैसें तुमारे भी कहो, ऐसैं क्यौं कहो जो ये पंचपरमेष्ठीही प्रधान हैं अन्य नांही ? ताकूं कहिये, रे भाई ! जीवनिके दुःख तौ संसार भ्रमणका है अर संसारके भ्रमणका कारण राग द्वेष मोहादिक परिणाम है अर रागा-दिक वर्त्तमानमैं आकुलतामयी दुःखस्वरूप हैं तातैं ते ब्रह्मादिक इष्ट दव कहे ते तौ रागादिक काम क्रोधादिकरि युक्त हैं, अज्ञान तपके फलतें केई जीव सर्व लोकमैं चमत्कारसहित राजादिक बडी पदवी पावै ताकूं लोक बडा मानि लोक ब्रह्मादिक भगवान कहनें लगिजाय, कहै जो—ये परमे-श्वर ब्रह्मका अवतार है सो ऐसे मानें तौ कछू मोक्षमार्गी तथा मोक्षरूप होय नांही, संसारीही रहें हैं । ऐसैंही अन्यदेव सर्व पदवी वाले जाननें ते आपही रागादिककरि दुःखरूप हैं जन्ममरण करि सहित हैं ते परका संसारका दुःख कैसैं मेढेंगे। अर तिनिके मतमैं विघ्नका टलनां अर राजादिक बडे पुरुष होते कहे सो ये तो जीवनिकै पूर्वै कछू शुभ कर्म बंधे थे.
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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