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________________ अष्टपाहुडमें मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका । २४७ आगैं शिष्य पूछ्या जो सम्यक्त्व कैसा है ? ताके समाधानकूं या सम्यक्त्वके बाह्य चिह्न बतावै है, - -- गाथा -- हिंसारहिए घम्मे अहारहदोसवज्जिए देवे । furi oar सद्दहणं होड़ सम्मत्तं ॥ ९० ॥ संस्कृत --हिंसारहिते धर्मे अष्टादशदोपवर्जिते देवे । निर्ग्रथे प्रवचने श्रद्धानं भवति सम्यक्त्वम् ॥ ९० ॥ अर्थ — हिंसारहित 'धर्म, अठारह दोपरहित देव, निर्प्रथ प्रवचन कहिये मोक्षका मार्ग तथा गुरु इनिविषै श्रद्धान होतें संतैं सम्यत्क्व होय है ॥ 1 भावार्थ — लौकिकजन तथा अन्यमती जीवनिकी हिंसा करि धर्म मानें हैं, अर जिनमतमैं अहिंसा धर्म का है ताहीकूं श्रद्धै अन्यकूं नांही श्रद्धे सो सम्यग्दृष्टी है। लौकिक अन्यमतीनिनैं माने हैं ते सर्व देव क्षुधादि तथा रागद्वेषादि दोषनि करि संयुक्त हैं तातैं वीतराग सर्वज्ञ अरहंत देव सर्वदोषनिकर रहित है ताकूं देव माने श्रद्धे सो सम्यग्दृष्टी है । इहां दोष अठार कहे ते प्रधानता अपेक्षा कहे हैं ते उपलक्षणरूप जाननें, इनि सारिखे अन्यभी जान लेनें । बहुरि निर्बंध प्रवचन कहिये मोक्षमार्ग सोही मोक्षमार्ग है, अन्यलिंगतें अन्यमती श्वेतांबरादिक जैनाभास मोक्ष मानें हैं सो मोक्षमार्ग नांही है। ऐसा श्रद्वै सो सम्यग्दृष्टी है. ऐसा जाननां ॥९०॥ आइसही अर्थ दृढ करते कहैं हैं; गाथा -- जहजारूवरूवं सुसंजयं सव्वसंगपरिचत्तं । लिंगं ण परावेक्खं जो मण्णइ तस्स सम्मत्तं ॥ ९१ ॥ संस्कृत --- यथाजातरूपरूपं सुसंयतं सर्वसंगपरित्यक्तम् । लिंगं न परापेक्षं यः मन्यते तस्य सम्यक्त्वम् ॥ ९१ ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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