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________________ ३१४ पंडित जयचंदजी छावड़ा विरचित भावार्थ — सर्वज्ञदेव जीव पुद्गल धर्म अधर्म आकाश काल ये छह द्रव्य कहे हैं तिनिमैं जीव तौ दर्शनज्ञानमयी चेतना स्वरूप कया है सो अमूर्त्तीक है स्पर्श रस गंध वर्ण इनितैं रहित है अर पुद्गल आदि पांच अजीव कहे हैं ते अचेतन हैं जड हैं । तिनिमैं पुगल स्पर्श रस गंध वर्ण शब्दसहित मूर्तीक है इंद्रियगोचर है, अन्य अमूर्तक हैं; तहां आकाशादि च्यारि तौ जैसें हैं तैसें तिष्ठे हैं, अर जीव पुगलकै अनादिसंबंध है छद्मस्थकै इंद्रियगोचर पुद्गलस्कंध हैं तिनिकूं ग्रहणकरि रागद्वेष मोहरूप परिणमै है शरीरादिकूं आपा माने है तथा इष्ट अनिष्ट मांनि रागद्वेषरूप होय है या नवीन पुद्गल कर्मरूप होय बंधकूं प्राप्त होय है, यह निमित्त नैमित्तिकभाव है; ऐसैं यह जीव अज्ञानी भया संताजीब पुद्गलका भेदकूं न जांनि मिथ्याज्ञानी होय हैं। यातें आचार्य कहै है जो जिनदेवके मततैं जीव अजीवका भेट जानि सम्यग्ज्ञानका स्वरूप जाननां, बहुरि यह जिनदेव का सो ही सत्यार्थ है प्रमाण नयकरि ऐसे ही सिद्ध होय है जातै जिनदेव सर्वज्ञ है सो सर्व वस्तुकं प्रत्यक्ष देखि - करि कया हैं । अन्यमती छद्मस्थ हैं तिनिनैं अपनी बुद्धि मैं आया तैसें कल्पना करि कया है सो प्रमाणसिद्ध नांही; तिनिमैं केई वेदान्ती तौ एक ब्रह्ममात्र कहैं हैं अन्य किछू वस्तुभूत नांही मायारूप अवस्तु है ऐसें मानें हैं, अर केई नैयायिक वैशेषिक जीवकूं सर्वथा नित्य सर्वगत हैं हैं जीव अर ज्ञानगुणक सर्वथा नेद मानें हैं अर अन्य कार्यमात्र हैं तिनिकूं ईश्वर करे हैं ऐसे मानें हैं, बहुरि केई सांख्यमती पुरुषकूं उदासीन चैतन्यस्वरूप मांनि सर्वथा अकर्त्त मानें हैं ज्ञानकूं प्रधानका धर्म मानें हैं, कई बौद्धमती सर्व वस्तुकूं क्षणिक मानें हैं सर्वथा अनित्य मानें हैं तिनि मैं भी मतभेद अनेक हैं, केई विज्ञानमात्र तत्व मानें हैं केई सर्वथा शून्य मानें हैं कोई अन्यप्रकार मानें हैं, बहुरि मीमांसक
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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