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________________ २३८ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित जलकरि बुझावनां, अन्य प्रकार यह बुझै नाही, अर क्षमा गुण सर्व गुणनिमैं प्रधान है । तातैं यह उपदेश है जो क्रोधकू छोड़ि क्षमा ग्रहण करनां ॥ १०९॥ आगें दीक्षाकालादिककी भावनाका उपदेश करै है,गाथा-दिक्खाकालाईयं भावहि अवियारदसणविसुद्धो। उत्तमबोहिणिमित्तं असारसाराणि मुणिऊण ॥११०॥ संस्कृत-दीक्षाकालादिकं भावय अविकारदर्शनविशुद्धः । उत्तमबोधिनिमित्तं अंसारसाराणि ज्ञात्वा ॥११०॥ अर्थ-हे मुने ! तू दीक्षाकाल आदिककी भावना करि, कैसा भया संता:-अविकार कहिये अतीचाररहित जो निर्मल सम्यग्दर्शन ताकरि सहित भया संता, पूर्व कहाकरि संसारकू असार जाणिकरि, काहेकै अर्थि—उत्तमबोवि कहिये सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रकी प्राप्तिकै निमित्त ॥ भावार्थ--दीक्षा लेहै तब संसार भोगकू असार जाणि अत्यंत वैराग्य उपजै है तैसैंही ताकै आदिशब्दनैं रोगोत्पत्ति मरणकालादिक जाननां तिनिकालनिमैं जैसे भाव होय तैसेही संसारकू असार जाणि विशुद्ध सम्यग्दर्शनसहित भया संता उत्तमबोधि जो जामैं केवलज्ञान उपजै है ताकै अर्थि दीक्षाकालादिककी निरन्तर भावनाकरणी, ऐसा उपदेश है।११० १-मुद्रित संस्कृत प्रतिमें 'दीक्खाकालईयं' इसकी संस्कृत 'दीक्षाकालादीय' की है। २-मुद्रितसंस्कृत प्रतिमें ‘अविचार दंसणविशुद्धो' ऐसे दो पद किये हैं जिनकी संस्कृत 'हे अविचार ! दर्शन वेशुद्धः' इस प्रकार है। ३-संस्कृत टीकामें 'असारसाराणि' का अर्थ ‘सार और असारको जान कर ऐसा किया है।
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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