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२१२ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित--
भावार्थ-जाकै धर्ममैं वासना नाही ताः क्रोधादिक दोष ही वसै अर दिगंबररूप धारै तौ वह मुनि इक्षुके फूल सारिखा निर्गुण अर निष्फल है ऐसे मुनिकै मोक्षरूप फल न लागै, अर सम्यग्ज्ञानादिक गुण जामैं नाही तब नग्न भया भांडकासा स्वांग दीखे, सो भी भांड नाचैं तब शृंगारादिक करि नाचैं तो शोभा पावै. नग्न होय नाचै तब हास्य... पावै तैसैं केवल द्रव्य नागा हास्यका स्थानक है ॥ ७१ ॥ ___ आगैं इसही अर्थका समर्थनररूप कहे है जो--द्रव्यलिंगी बोधि समाधि जैसी जिनमार्गमैं कही है तैसी नाही पावे हैं;गाथा जे रायसंगजुत्ता जिणभावणरहियदव्वणिग्गंथा ।
न लहंति ते समाहिं बोहिं जिणसासणे विमले॥७२॥ संस्कृत-ये रागसंगयुक्ताः जिनभावनारहितद्रव्यनिग्रंथाः।
न लभंते ते समाधि बोधिं जिनशासने विमले ॥७२ ___ अर्थ-जे मुनि राग कहिये अभ्यंतर परद्रव्यसूं प्रीति सोही भया संग कहिये परिग्रह ताकरि युक्त है, बहुरि जिनभावना कहिये शुद्धस्वरूपकी भावनाकरि रहित हैं ते द्रव्यनिर्ग्रन्थ हैं तौहू निर्मल जिनशासनविषै जो समाधि कहिये धर्मशुक्लध्यान अर बोधि कहिये सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रस्वरूप मोक्षमार्ग ताहि न पावै है ॥ ___ भावार्थ-द्रव्यलिंगी अभ्यन्तरका राग छो? नाही परमात्माकू भावे नाही तब कैसैं मोक्षमार्ग पावै तथा समाधिमरण कैसे पावै ॥ ७२ ॥ ___ आगैं कहै है जो—पहलै मिथ्यात्व आदिक दोष छोडिकरि भावकरि नग्न होय पीछे द्रव्यमुनि होय यह मार्ग है;-- गाथा-भावेण होइ णग्गो मिच्छत्ताई य दोस चइऊणं ।
पच्छा दव्वेण मुणी पयदि लिंगं जिणाणाए ॥७३॥