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________________ _____ अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका। १९७ ___ अर्थ-आचार्य कहै है जो पहलै बाहु मुनि कह्या तैसें ही और भी दीपायननामा द्रव्यश्रमण सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र” भ्रष्ट भया संता अनंतसंसारी भया ॥ ___ भावार्थ—पूर्ववत् याकी कथा संक्षेप” ऐसी, नवमां बलभद्र श्रीनेमिनाथतीर्थकरकू पूछी जो स्वामिन् ! या द्वारिकापुरी समुद्रमैं है सो याकी स्थिति केतेककाल है ? तब भगवान् कही रोहिणीको भाई दीपायन तेरो मामो बारह वर्ष पीछे मद्यका निमित्तकरि क्रोधकरि या पुरीकू दग्ध करिसी, ऐसे वचन भगवानके वचन सुनि निश्चयकरि दीक्षा ले पूर्वदेशनैं गया, बारह वर्ष व्यतीत करनेंकू तप करनां आरंभ्या, अर वलभद्र नारायण द्वारिकामैं मद्यनिषेधकी धोषणा दई, तब मद्यका वासण तथा ताकी सामग्री मद्य करणेवाला वाह्य पर्वतादिकमैं क्षेप्या, तब वासणकी मदिरा तथा मद्यकी सामग्री जलके निवासनिमैं फैली, पीछे वारह वर्ष बीत्या जाणि दीपायन द्वारिका आय नगरवाह्य आतापनयोगकरि तिष्ठया भगवानका वचनकी प्रतीति न राखी पीछे शंभवकुमादिक क्रीडा करते तृषावंत होय कुंडनिमैं जल जानि पीवते भये, तब तिस मद्यके निमित्त” कुमार उन्मत्त भये, तहां दीपायनमुनिकू तिष्ठया देखि कहते भये-जो ये द्वारिकाका भस्म करनेवाला दीपायन है, ऐसैं कहिकरि तिसळू पाषाणदिककरि घात करते भये, तब दीपायन भूमिमैं गिरि पड्या, तब ताकू क्रोध उपज्या ताके निमित्त” द्वारिका दग्ध भई । ऐसैं दीपायन भावशुद्धि बिना अनन्त संसारी भया ॥ ५० ॥ _ आरौं भावशुद्धिकरि सहित मुनि भया त्यां सिद्धि पाई ताका उदाहरण कहै है;गाथा-भावसमणो य धीरो जुवईजणवेडिओ विसुद्धमई। णामेण सिवकुमारो परीत्तसंसारिओ जादो ॥५१॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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