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________________ अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका। १६३ भावार्थ—जारौं गुण जे स्वर्ग मोक्षका होनां अर दोष जे नरकादिक संसारका होनां इनिका कारण भगवान भावहीकू कह्या है या कारण होय सो कार्यकै पहलैं प्रवतै सो इहां मुनि श्रावककै द्रव्य लिंगक पहलै भावलिंग होय तौ सांचा मुनि श्रावक होय है तातै भावलिंगही प्रधान है प्रधान होय सोही परमार्थ है, तातै द्रव्यलिंगकू परमार्थ न जाननां ऐसैं उपदेश किया है। __ इहां कोई पूछ-भावस्वरूप कहा है ? ताका समाधान-जो भावका स्वरूप तौ आचार्य आज कहसी तथापि इहांभी किछू कहिये है—या लोकमैं षट् द्रव्य हैं तिनिमैं जीव पुद्गलका वर्तन प्रकट देखने में आवै है-तहां जीव तौ चेतनास्वरूप है अर पुद्गल स्पर्श रस गंध वर्ण स्वरूप जड है इनिकी अवस्था” अवस्थारतरूप होनां ऐसा परिणाम... भाव कहिये है तहां जीवका स्वभाव परिणामरूप भाव तौ दशन ज्ञान है अर पुद्गल कर्मके निमित्त” ज्ञानमैं मोह राग द्वेष होनां सो विभाव भाव है बहुरि पुद्गलके स्पर्श” स्पर्शान्तर रसते रसान्तर इत्यादि गुणते गुणान्तर होनां सो तौ स्वभावभाव है अर परमाणुनै स्कंध होनां तथा स्कंधतै अन्यस्कंध होनां तथा जीवके भावके निमित्ततें कर्मरूप होनां ये विभाव भाव है, ऐसैं इनिकै परस्पर निमित्तनैमित्तिक भाव प्रवर्ते है। तहां पुद्गल तौ जड है ताके नैमित्तिकभावतें किळू सुख दुःख आदि नाही अर जीव चेतन है याके निमित्तौं भाव होय तिनितें सुखदुःख आदि प्रवत्त है तातै जीवकू स्वभाव भावरूप रहनेका अर नैमित्तिकभावरूप न प्रवर्त्त का उपदेश है । अर जीवकै पुद्गल कर्मके संयोग” देहादिक द्रव्यका संबंध है सो इस बाह्यरूपकू द्रव्य कहिये सो भावतें द्रव्यकी प्रवृत्ति ह्येय है ऐसे द्रव्यकी प्रवृत्ति होय है । ऐसें द्रव्य भावका स्वरूप जाणि स्वभावमैं प्रवत्तै विभावमैं न प्रवत्तै ताकै परमानंद सुख होय
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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