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________________ १३२ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित - अर पुण्यका अभाव कह्या सो मोक्षगमन होना यह मरण अरहंतकै हैं अर पुण्यप्रकृतिनिका उदय पाइये हैं, तिनिका अभाव कैसैं ? ताका समाधान — इहां मरण होय करि फेरि संसार मैं जन्म होय ऐसा मरणकी अपेक्षा है ऐसा मरण अरहंत कै नांही तैसैंही जो पुण्यप्रकृतिका उदय पापप्रकृति सापेक्ष करै ऐसे पुण्यके उदयका अभाव जाननां अथवा बंध अपेक्षा पुण्यकाभी बंध नांही है सातावेदनीय बंधै सो स्थिति अनुभागविना अधतुल्यही है । बहुरि कोई पूछे - केवली असाता वेदनीयका उदयभी सिद्धांत मैं कह्या है ताकी प्रवृत्ति कैसे है ? ताका समाधानऐसा जो असाताका निपट मंद अनुभाग उदय हैं अर साताका अतितीव्र अनुभाग उदय है ताके बशर्तें असाता कछू बाह्य कार्य करने समर्थ नांही सूक्ष्म उदय देय खिरि जाय है तथा संक्रमणरूप होय सातारूप होय जाय है ऐसैं जाननां । ऐसैं अनंत चतुष्टयकरि सहित सर्व दोषरहित सर्वज्ञ वीतराग होय सो नामकरि अरहंत कहिये ॥ ३० ॥ आगैं स्थापनाकरि अरहंतका वर्णन करें हैं:गाथा - गुणठाणमग्गणेहिं य पज्जत्तीपाणजीवठाणेहिं । ठावण पंचविहेहिं पणयव्वा अरहपुरिसस्त ।। ३१ । संस्कृत - गुणस्थानमार्गणाभिः च पर्याप्तिप्राणजीवस्थानैः । स्थापना पंचविधैः प्रणतव्या अर्हत्पुरुषस्य ।। ३१ ।। अर्थ —– गुणस्थान मार्गणास्थान पर्याप्त प्राण बहुरि जीवस्थान इनि पांच प्रकार करि अरहंत पुरुषकी स्थापनां प्राप्त करनी अथवा ताकूं प्रणाम करनां ॥ भावार्थ — स्थापनानिक्षेपमैं काष्ठपाषाणादिक मैं संकल्प करनां कला है सो इहां प्रधान नांही, इहां निश्चय प्रधान करि कथन है तहां गुणस्थानादिककरि अरहंतका स्थापन कया है ॥ ३१ ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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