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________________ अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका। १२५ संस्कृत-ज्ञानं पुरुषस्य भवति लभते सुपुरुषोऽपि विनयसंयुक्तः । ज्ञानेन लभते लक्ष्यं लक्षयन् मोक्षमार्गस्य ॥ २२ ॥ __ अर्थ- ज्ञान होय है सो पुरुषकै होय है बहुरि पुरुषही विनय संयुक्त होय सो ज्ञानकू पावै है, बहुरि ज्ञान पावै तब तिस ज्ञानहीकरि मोक्षमार्गकी लक्ष्य जो परमात्माका स्वरूप ताकू लक्षता घ्यावता संता तिस लक्ष• पावै है ॥ ___ भावार्थ-ज्ञान पुरुषकै होय है बहुरि पुरुषही विनयवान होय सो ज्ञानकू पावै है तिस ज्ञानहीकरि शुद्धआत्माका स्वरूप जानिये है यातै विशेष ज्ञानीनिका विनयकरि ज्ञानकी प्राप्ति करनी जातै निज शुद्ध स्वरूपकू जानि मोक्ष पाइये है, इहां जे विनयकार रहित होय यथार्थ सूत्र पदतै चिगे होय भ्रष्ट भये होय तिनिका निषेध जाननां ॥ २२ ॥ ___ आण याहीकू दृढ करै है;गाथा-मइधणुहं जस्स थिरं सुदगुण बाणा सुअस्थि रयणत्तं । परमत्थवद्धलक्खोण वि चुक्कदि मोक्खमग्गस्स ।।२३। संस्कृत-मतिधनुर्यस्य स्थिरं श्रुतं गुणः वाणाः सुसंति रत्नत्रयं । परमार्थवद्धलक्ष्यः नापि स्खलति मोक्षमार्गस्य ॥२३॥ __ अर्थ——जो मुनिकै मतिज्ञानरूप धनुष थिर होय, बहुरि श्रुतज्ञानरूप जाकै गुण कहिये प्रत्यंचा होय, बहुरि रत्नत्रय रूप जाकै भला बाण होय, बहुरि परमार्थ स्वरूप निज शुद्धात्मस्वरूपका संबंधरूप किया है लक्ष्य जानैं ऐसा मुनि है सो मोक्षमार्गकू नांहीं चूकै है ॥ भावार्थ-धनुषकी सर्व सामग्री यथावत मिलै तब निसानां नाहीं चूकै है तैसैं मुनिके मोक्षमार्गकी यथावत सामग्री मिले तब मोक्षमार्गरौं भ्रष्ट नाही होय है ताका साधनकरि मोक्ष पावै है यह ज्ञानका माहात्म्य
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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