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________________ अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका । गाथा - दढसंजम मुद्दाए ईदियमुद्दा कसायदढमुद्दा । मुद्दा इह णाणाए जिणमुद्दा एरिसा भणिया ||१९ ॥ संस्कृत — दृढसंयममुद्रया इन्द्रियमुद्रा कषाय दृढमुद्रा । मुद्रा इह ज्ञानेन जिनमुद्रा ईदृशी भणिता ॥ १९ ॥ अर्थ — दृढ कहिये वज्रवत् चलाया न चलै ऐसा संयम - इन्द्रिय मनका वश करनां, षट्जीवनिकायकी रक्षा करनां, ऐसे संमयरूप मुद्राकरि तौ पांच इंद्रियनिक विषयनिमैं न प्रवर्त्तावना तिनिका संकोच करनां यह तौ इंद्रियमुद्रा है, बहुार ऐसा संयम करिही कषायनिकी प्रवृत्ति जा मैं नहीं ऐसी कषायदृढमुद्रा है, बहुरि ज्ञानका स्वरूपविषै लगावनां ऐसे ज्ञानकरि सर्व बाह्य मुद्रा शुद्ध होय हैं, ऐसैं जिनशासनवि ऐसी जिनमुद्रा होय है ॥ १२३ भावार्थ-संयमसहित होय इन्द्रिय जाकै वशीभूत होय अर कषायनिकी प्रवृत्ति नांही होती होय अर ज्ञानस्वरूप मैं लगावता होय ऐसामुनि होय सो ही जिनमुद्रा है ॥ १९ ॥ आमैं ज्ञानका निरूपण करें हैं: गाथा - संजम संजुत्तस्स य सुझाणजोयस्स मोक्खमग्गस्स | णाणेण लहदि लक्खं तम्हा णाणं च णायव्वं ॥ २० ॥ संस्कृत - संयमसंयुक्तस्य च सुध्यानयोग्यस्य मोक्षमार्गस्य । ज्ञानेन लभते लक्षं तस्मात् ज्ञानं च ज्ञातव्यम् ॥ २० ॥ अर्थ —संयमकरि संयुक्त अर ध्यानके योग्य ऐसा जो मोक्षमार्ग ताका लक्ष्य कहिये लक्षणे योग्य वैद्य निसानां जो आपका निजस्वरूप सो ज्ञानकरि पाइये हैं, तातैं ऐसे लक्ष्यके जाननें कूं ज्ञानकूं जाननां ॥ (१) 'सुध्यानयोगस्य ' ऐसा सटीक संस्कृत प्रतिमें पाठ है जिसका श्रेष्ठ: ध्यानसहित ऐसा अर्थ है ( २ ) ' वेध्यक' ऐसा पाठ है ।
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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