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________________ अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका। ११५ बाह्य दोऊकी शुद्धतारूप ऋद्धिधारी मुनि ऋषीश्वर कह्या, बहुरि इस तीसरी गाथामैं केवलज्ञानी है सो मुनिनिमैं प्रधान है ताकू सिद्धायतन कह्या है । इहां ऐसा जाननां जो आयतन नाम जामैं वसिये निवास करिये ताका है सो धर्मपद्धतिमैं जो धर्मात्मा पुरुषकै आश्रय करनेयोग्य होय सो धर्मायतन है सो ऐसे मुनिही धर्मके आयतन हैं, अन्य केई भेषधारी पाखंडी विषय कषायनिमैं आसक्त परिग्रहधारी धर्मके आयतन नाही हैं तथा जैनमतमैं भी जे सूत्रविरुद्ध प्रवर्ते हैं ते भी आयतन नाही है, ते सर्व अनायतन हैं, तथा बौद्धमतमैं पांच इंद्रिय, पांच तिनिके विषय, एक मन, एक धर्मायतन शरीर, ऐसैं बारह आयतन कहे हैं ते भी कल्पित हैं, यातैं जैसा आयतन कह्या तैसा ही जाननां, धर्मात्माकू तिसहीका आश्रय करनां अन्यकी स्तुति प्रशंसा विनयादिक न करना, यह बोधपाहुड ग्रंथ करनेका आशय है। बहार जामैं ऐसे मुनि वसैं ऐसा क्षेत्रकूभी आयतन कहिये है सो यह व्यवहार है ॥ ७ ॥ आगैं चैत्यगृहका निरूपण करै है;गाथा-बुद्धं जं वोहंतो अप्पाणं चेदयाई अण्णं च ।। पंचमहव्वयसुद्धं णाणमयं जाण चेदिहरं ॥ ८॥ संस्कृत--बुद्धं यत् बोधयन् आत्मानं चैत्यानि अन्यत् च । पंचमहाव्रतशुद्धं ज्ञानमयं जानीहि चैत्यगृहम्॥ ८॥ ___ अर्थ-जो मुनि बुद्ध कहिये ज्ञानमयी ऐसा आत्मा ताहि जानता होय बहुरि अन्य जीवनकू चैत्य कहिये चेतना स्वरूप जानता होय बहुरि आप ज्ञानमयी होय बहुरि पांच महाव्रतनिकरि शुद्ध होय निर्मल होय ता मुनिकू हे भव्य ! तू चैत्यगृह जानि ॥ . ___भावार्थ-जामैं आपा परका जाननेवाला ज्ञानी निःपाप निर्भल ऐसा चैत्य कहिये चेतनास्वरूप आत्मा वसै सो चैत्यगृह है सो ऐसा चैत्यगृह
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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