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________________ अष्टपाहुडमें चारित्रपाहुडकी भाषावचनिका। १०१ संस्कृत-साधयंति यन्महांतः आचरितं यत् महत्पूर्वैः । यच्च महन्ति ततः महाव्रतानि एतस्माद्धेतोः तानि३१ ___ अर्थ—महल्ला कहिये महंत पुरुष जिनिळू साधैं आचरै बहुरि पहलैं भी जिनिकू महंत पुरुषनि आचरे बहुरि ये व्रत आपही महान हैं जातें जिनिमैं पापका लेश नाहीं ऐसैं ये पांच महाव्रत हैं ॥ __भावार्थ-जिनिकू बड़े पुरुष आचरण करैं अर आप निर्दोष होय ते ही बड़े कहावै, ऐसैं इनि पांच व्रतनिक महाव्रत संज्ञा है ॥ ३१ ॥ ___ आरौं इनि पांच व्रतनिकी पच्चीस भावना है तिनिकू कहै है तिनिमैं प्रथमही अहिंआव्रतकी पांच भावना कहिये है:माथा-वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणणिक्वो । अवलोयभोयणाए अहिंसए भावणा होति ॥३२॥ संस्कृत-वचोगुप्तिः मनोगुप्तिः ईर्यासमितिः सुदाननिक्षेपः अवलोक्य भोजनेन अहिंसाया भावना भवंति ॥३२॥ अर्थ-वचनगुप्ति अर मनोगुप्ति ऐसैं दोय तौ गुप्ति अर ईर्यासमिति बहुरि भलै प्रकार कमंडलु आदिका ग्रहण निक्षेप यह आदाननिक्षेपणा समिति बहुरि नीकै देखि विधिपूर्वक शुद्ध भोजन करनां यह एषणा समिति ऐसैं ये पांच अहिंसा महाव्रतकी भावना हैं । भावार्थ-~भावना नाम वार वार तिसहीका अभ्यास करना ताका है सो इहां प्रवृत्ति निवृत्तिमैं हिंसा लागै ताका निरंतर यत्न राखै तब अहिंसाव्रत पलै याइहां योगनिकी निवृत्ति करनी तौ भलैप्रकार गुप्तिरूप करनी अर प्रवृत्ति करनी तौ समिति रूप करनी ऐसे निरंतर अभ्यासआहंसा महाव्रत सृढ़ रहै है, ऐसा आशयनै इनिळू भावना कही है ॥३२॥ आगैं सत्यमहाव्रतकी भावना कहैं है
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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