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________________ अष्टपाहुडमें चारित्रपाहुडकी भाषावचनिका । . ८५ भावार्थ-सर्वज्ञके भाषे तत्वार्थकी श्रद्धा निःशंकित गुणनिकरि सहित पचीस मल दोषनिकरि रहित ज्ञानवान आचरण करै ताकू सम्यक्त्वचरण चारित्र कहिये सो यह मोक्षकी प्राप्तिकै अर्थि होय है जानैं मोक्षमार्गमैं पहलैं सम्यग्दर्शन कह्या है तातें मोक्षमार्गमैं प्रधान यह ही है ॥५॥ आनें कहै है जो ऐसा सम्यत्क्वचरणचारित्रकू अंगीकार करि जो संयमचरण चारित्रकू अंगीकार करै तौ शीघ्रही निर्वाणकू पावै;गाथा-सम्मत्तचरणसुद्धा संजमचरणस्स जइ व सुपसिद्धा। णाणी अमूढदिट्टी अचिरे पावंति णिव्वाणं ॥९॥ संस्कृत-सम्यक्त्वचरणशुद्धाः संयमचरणस्य यदि वा सुप्रसिद्धाः। ज्ञानिनः अमुढदृष्टयः अचिरं प्राप्नुवंति निर्वाणम् ॥९॥ अर्थ-जे ज्ञानी भये संते अमूढदृष्टी होय करि अर सम्यत्क्व चरण चारित्रकार शुद्ध होय हैं अर जो संयमचरण चारित्रकरि सम्यक प्रकार शुद्ध होय तौ शीघ्रही निर्वाणकू प्राप्त होय हैं ॥ भावार्थ—जो पदार्थनिका यथार्थज्ञानकरि मूढदृष्टिरहित विशुद्ध सम्यग्दृष्टी होयकरि सम्यक्चारित्रस्वरूप संयम आचरै तौ शीघ्रही मोक्षकू पावै संयम अंगीकार भये स्वरूपका साधनरूप एकाग्र धर्मध्यानके बलतें सातिशय अप्रमत्त गुणस्थानरूप होय श्रेणी चढि अंतर्मुहूर्त मैं केवलज्ञान उपजाय अघातिकर्मका नाशकरि मोक्ष पावै है, सो यह सम्यत्क्वचरणचारित्रकाही माहात्म्य है ॥९॥ - आगैं कहै है—जो, सम्यक्त्वके आचरणकरि भ्रष्टहैं ते संयमका आचरण करैं हैं तौऊ मोक्ष नांहीं पावैं हैं;
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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