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________________ अष्टपाहुडमें चारिपात्रहुडकी भाषावचनिका । ८३ अर इनके भक्त ऐसैं छह; इनिकू धर्मके ठिकानें जानि इनिकी मन करि प्रशंसा करनां वचनकरि सराहना करना काय करि वंदनां करनां, ये धर्मके ठिकाने नांही तारौं इनि• अनायतन कहे । बहुरि जाति लाभ कुल रूप तप बल विद्या ऐश्वर्य इनिका गर्व करनां ऐसैं आठ मद हैं; तहां जाति तौ मातापक्ष है, अर लाभ धनादिक कर्मके उदयके आश्रय हैं, कुल पितापक्ष है, रूप कर्मउदयाश्रित है, तप अपना स्वरूप साधनकू है बल कर्म उदयाश्रित है; विद्याकर्मके क्षयोपशमाश्रित है ऐश्वर्य कर्मोदयाश्रित है; इनिका गर्व कहा! परद्रव्यके निमित्त होय ताका गर्व करनां सो सम्यक्त्वका अभाव जनावै है अथवा मलिनता करै है। ऐसैं ये पच्चीस सम्यक्त्वके मल दोष हैं तिनिकू त्यागे सम्यक्त्व शुद्ध होय है, सो ही सम्यक्त्वाचरणचारित्रका अंग है ॥ ६॥ ___ आगै शंकादि दोष दूरि भये आठ अंग सम्यत्क्वके प्रगट होय हैं तिनिकू कहै है;गाथा-णिस्संकिय णिकंखिय णिव्विदिगिंछा अमूढदिट्टी य। उवगृहण ठिदिकरणं वच्छल्ल पहावण य ते अह ॥७॥ संस्कृत-निःशंकितं निःकांक्षितं निर्विचिकित्सा अमूढदृष्टी च। उपगृहनं स्थितीकरणं वात्सल्यं प्रभावना च ते अष्टौ ॥ ७॥ अर्थ-निःशंकित निःकांक्षित निर्विचिकित्सा अमूढदृष्टी उपगृहन स्थितीकरण वात्सल्य प्रभावना ऐसैं आठ अंग हैं ॥ भावार्थ-ये आठ अंग पहिलैं कहे जे शंकादि दोष तिनिके अभावतें प्रगट होय हैं, तिनिके उदाहरण पुराणनिमैं हैं तिनिकी कथातें जाननें । निःशंकितका तौ अंजन चौरका उदाहरण है जानै जिनवचनविर्षे शंका
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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