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________________ श्रीः॥ अथ चारित्रपाहुड। -:०: (३) दोहा। वीतराग सर्वज्ञ जिन वंदं मन वच काय । चारित धर्म वखानियो सांचो मोक्षउपाय ॥१॥ कुन्दकुन्दमुनिराजकृत चारितपाहुड ग्रंथ । प्राकृत गाथावंधकी करूं वचनिका पंथ ॥ २॥ . ऐसे मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करि अर अब चारित्रपाहुड प्राकृत गाथाबधकी देशभाषामय वचनिका लिखिये है;--तहां श्री कुन्दकुन्द आचार्य प्रथम ही मंगलकै अर्थ इष्टदेवकू नमस्कार कार चारित्रपाहुडकी कहनेंकी प्रतिज्ञा करें हैं;गाथा-सव्वण्हु सव्वदंसी णिम्मोहा वीयराय परमेही । वंदित्तु तिजगवंदा अरहंता भव्वजीवेहि ॥ १॥ णाणं दंसण सम्मं चारित्तं सोहिकारणं तेसि । मुक्खाराहणहेउं चारित्तं पाहुडं वोच्छे ॥२॥ युग्मम् । संस्कृत-सर्वज्ञान् सर्वदर्शिनः निर्मोहान् वीतरागान् परमेष्ठिनः। वंदित्वा त्रिजगद्वंदितान् अर्हतः भव्यजीवैः ॥१॥ ज्ञानं दर्शनं सम्यक चारित्रं शुद्धिकारणं तेषाम् । मोक्षाराधनहेतुं चारित्रं प्राभृतं वक्ष्ये ॥२॥ युग्मम् ।।
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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