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________________ श्री संवेगरंगशाला मुनियों ! इस जल में रुद्र नामक तुम्हारे दुष्ट शिष्य ने जहर डाला है, इस कारण से इसे कोई पीना नहीं। यह सुनकर भ्रमणों ने उसी समय दुष्ट शिष्य और उस पानी को त्रिविध-त्रिविध त्याग किया। उसके बाद मुनिजन को मारने के अध्यवसाय से अत्यन्त पाप उपार्जन करने से महाभारी कर्मी वह उसी जन्म में ही अति तोव रागीकुल शरीर वाला बना, भगवती दोक्षा छोड़कर इधर-उधर घर में रहता हुआ, बहुत पाप कर्म की बुद्धि वाला बिना, भिक्षा वृत्ति से जीता मनुष्यो के मुख से 'यह दीक्षा भ्रष्ट है, अदर्शनीय है, अत्यन्त दुष्ट चेष्टा वाला है' ऐसे शब्दों से प्रत्यक्ष अपमानित होता, आहट्ट दोहट्ट को प्राप्त करता, स्थान-स्थान पर रौद्र ध्यान को करते, व्याधियों रूपो अग्नि से व्याकूल शरीर वाला, अति कर मति वाला, मरकर सर्व नारकियों के प्रायोग्य पाप बन्ध में एक हेतू भूत अत्यन्त तुच्छ और निंदनीय तिर्यंच का विविध यानियों में, वहाँ से पुनः प्रत्यक भव में एकान्तरित तिर्यंच की अन्तर गतिपूर्वक अर्थात् बोच-बाच में अति तोक्ष्ण लाखों दुःखों का स्थान स्वरूप धम्मा, वंशा, शैला आदि सातो नरक पृथ्वीओं मे उस नरक के उत्कृष्ट आयुष्य का बन्धन करते अनुक्रम से उत्पन्न हुआ। उसके बाद जलचर, स्थलचर खेचर की योनियों में अनेक बार उत्पन्न हुआ, फिर द्वोंद्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय जाति में भी विविध प्रकार को बहुत योनियों के अन्दर अनक बार उत्पन्न हुआ, वहाँ से जल, अग्नि, वायु और पृथ्वाकाय में असंख्य काल तक उत्पन्न हुआ, इस तरह वनस्पतिकाय में भी उत्पन्न हुआ वहाँ अनन्तकाल तक उत्पन्न हुआ। उसके बाद मनुष्य होने पर भी बर्बर अनार्य, नोच, चंडाल, भिल्ल, चमार, धोबो आदि योनियों में उत्पन्न हुआ प्रत्येक जन्म में भी मनुष्यों का द्वेष पात्र बना था और अति दुःखी हालत में जोक्न व्यतीत करता था। तथा कई शस्त्र से चोरा जाता, कई पत्थर से चूर होता, तो कहीं पर रोग से दुःखी होता, कहीं पर बिजली से जलता, कभी मछोमार मारता, कहीं पर ज्वर से मरता, कहीं अग्नि से जलता कभी गांठ बन्धन या फांसी से मरता, कभो गर्भपात से मरता, कभी शत्रु से मरता, कभी यन्त्र में पिलाया जाता, कभी शूली को चढ़ाते, कभी पानी में डुबता, कहीं गड्ढे में फेंका जाता, इत्यादि महा दुःखों को सहन करते बार-बार मृत्यु के मुख में गया। इस तरह अनेक जन्मों की परम्परा तक दुःखों को सहन करने से पाप कर्म हल्के और कषाय कम होने से चूर्णपुर नामक श्रेष्ठ नगर में वैश्रमण सेठ को गृहिणो वसुभद्रा नामक पत्नो की कुक्षो से पुत्र रूप जन्म लिया और नियत
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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