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________________ ૪૬૧ श्री पन्च नमस्कार मन्त्र श्रेष्ठ मन्त्र को स्मरण करते हैं और शेष क्षुद्र श्री संवेगरंगशाला है, फिर भी समस्त वस्तुओं के साधने में समर्थ इस को 'तू याद कर और हमेशा दुःखी अवस्था में इस करना । इसके प्रभाव से भूत, वेताल, उपद्रव नहीं उपद्रवों का समूह भी अवश्य नाश होते हैं । इस तरह पिता के वचन आग्रह से उसने 'तहत्ति' कहकर स्वीकार किया, बाद में पिता मर गया और धन का समूह नष्ट हो गया, तब स्वच्छन्द भ्रमण करने का स्वभाव वाले उसने एक त्रिदन्डी के साथ में मित्रता की अथवा कुल मर्यादा छोड़ने वाले पुरुष लिए यह क्या है ? एक समय त्रिदन्डी ने विश्वासपूर्वक उसे कहा कि - हे भद्र ! यदि तू काली चतुर्दशी की रात्री में अखन्ड श्रेष्ठ अंग वाले मृतक शरीर को लेकर आये तो उसे दिव्य मन्त्र शक्ति से साधना करके तेरी दरिद्रता को खतम कर दूं । इस बात को श्रावक पुत्र ने स्वीकार किया और उसके कहे समयानुसार निर्जन शमशान प्रदेश में उसी तरह उसे मृतक लेकर दिया । फिर उस मुरदे के हाथ में तलवार देकर उसे मन्डलाकार बना कर उसके ऊपर बैठाया और उसके सामने ही श्रावक पुत्र को बैठाया । फिर उस त्रिदण्डी ने जोर से विद्या का जाप प्रारम्भ किया और विद्या के आवेश से मुरदा उठने लगा, इससे श्रावक पुत्र डरने लगा, अतः वह शीघ्र पन्च नमस्कार मन्त्र का स्मरण करने लगा, और इसके सामर्थ से मुरदा वापिस जमीन के ऊपर गिरा । पुनः त्रिदण्डी ढ़ा विद्या जाप से मुरदा उठा और श्रावक पुत्र के नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से नीचे गिरा, तब त्रिदन्डी ने कहा कि हे श्रावक पुत्र ? तू कुछ भी मन्त्रादि को जानता है ? उसने कहा कि- मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ फिर ध्यान के प्रकर्ष में चढ़ते त्रिदन्डी पुनः अपनी श्रेष्ठ विद्या का जाप करने लगा । तब पन्च नमस्कार से रक्षित श्रावक पुत्र के वह मुरदा खतम करने में असमर्थ बना और उसने शीघ्र ही त्रिदन्डी के दो टुकड़े कर दिए। खडग के प्रहार के प्रभाव से त्रिदन्डी के मृतक को सुवर्ण वाला बना श्रावक पुत्र ने देखा और प्रसन्न हुआ, उसके अंग उपांग को काट कर अपने घर में लेकर रखा, और भण्डार भर दिया । इस तरह श्री पंच परमेष्ठि मन्त्र के प्रभाव से धनाढ्य बना । काम के विषय में वह मिथ्यादृष्टि पति की पत्नी श्राविका दृष्टान्त रूप है कि जिस नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से भी पुष्पमाला बन गई । वह इस तरहश्राविका की कथा एक नगर के बाहर के विभाग में एक मिथ्या दृष्टि गृहपति रहता था और उसे धर्म में अत्यन्त रागी श्राविका पत्नी थी । उसके ऊपर दूसरी पत्नी
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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