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________________ ३८८ श्री संवेगरंगशाला पधारे हैं, इसलिए एक क्षण के लिए चल, हम दोनों साथ में जाकर उनको वंदन करें। फिर वे दोनों गये और उन्होंने प्रमाद से युक्त किसी तरह विकथा करने में रक्त मुनि को देखा। इससे उस मातंग मुनि में वह यक्ष गाढ़ अनुरागी बना, फिर नित्यमेव उस महामुनि को भावपूर्वक वन्दन करता और पाप रहित बना, उस यक्ष के दिन अत्यन्त सुखपूर्वक व्यतीत होने लगे। एक समय कोशल देश के राजा की भद्रा नाम की पुत्री परम भक्ति से यक्ष के मन्दिर में आई, साथ में अनेक प्रकार के फल-फूल के टोकरी उठाकर नौकर आये थे। भद्रा ने यक्ष प्रतिमा की पूजा कर उसकी मन्दिर की प्रदक्षिणा देते उसने मैल से मलिन शरीर वाले विकराल काले श्याम वर्ण वाले लावण्य से रहित और तपस्या से सूखे हुये काउस्सग्ग ध्यान में मातंग मुनि को देखा। उसे देखकर उसने अपनी मूढ़ता से थुथकार किया और मुनि निन्दा की, इससे तुरन्त कोपायमान होकर यक्ष ने उसके शरीर में प्रवेश किया। बार-बार अनुचित अलाप करती उसे महा मुश्किल से राजभवन में ले गये और अत्यन्त खिन्न चित्त वाले राजा ने भी अनेक मन्त्र-तन्त्र के रहस्यों को जानकार पुरुषों ने और वैद्यों को भी बुलाया, उन्होंने उसकी चारों प्रकार की औषधोपचारादि क्रिया की, परन्तु कुछ भी लाभ नहीं होने से वैद्य आदि रुक गये तब अन्य किसी व्यक्ति में प्रवेश कर उस यक्ष ने कहा कि-इसने साधु की निन्दा की है, इससे यदि तुम इसे उस साधु को ही दो तो छोड़ दूंगा, अन्यथा छुटकारा नहीं होगा। यह सुनकर 'किसी तरह यह बेचारी जीती रहे' ऐसा मानकर राजा ने उसे स्वीकार किया। फिर स्वस्थ शरीर वाली बनी उसे सर्व अलंकार से विभूषित होकर विवाह के योग्य सामग्री को लेकर वह बड़े आडम्बर पूर्वक वहाँ आई और पैरों में गिरकर मुनि से कहा कि हे भगवन्त ! मेरे ऊपर इस विषय में कृपा करो । मैं स्वयं विवाह के लिए आई हूँ, मेरे हाथ को आप हाथ से स्वीकार करो। मुनि ने कहा कि-जो स्त्रियों के साथ बोलना भी नहीं चाहता है, वह अपने हाथ से स्त्रियों के हाथ को कैसे पकड़ सकता है ? ग्रैवेयक देव के समान मुक्तिवधू में रागी महामुनि दुर्गति के कारण रूप युवतियों में राग को किस तरह करते हैं ? फिर यक्ष प्रतिकार करने के तीव्र रोष से मुनि रूप धारण करके उसके साथ विवाह किया और समग्र रात्री तक उसको उसका ही दुःख दिया। विवाह को स्वप्न समान मानकर और शोक से व्याकुल शरीर वाली वह प्रभात में माता-पिता के पास गई और सारा वृत्तान्त कहा, फिर यह स्वरूप जानकर रुद्रदेव नामक पुरोहित ने व्याकुल हुये राजा से कहा कि-हे देव ! यह साधु की पत्नी है और उस साधु ने त्याग की है, अतः तुम्हें उसे
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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