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________________ श्री संवेगरंगशाला २७३ सम्यग् विजय करना। बक्खतर आदि से युक्त हो और हाथ में धनुष्य-बाण धारण किए हो, फिर भी रण में से भागता हो तो सुभट जैसे निन्दा का पात्र बनता है, वैसे इन्द्रियों और कषायों के वश हुआ साधु भी निन्दा का पात्र बनता है। उन साधु को धन्य है कि ज्ञान और चारित्र में निष्कलंक जो विषयों को वश करके भी लोक में राग रहित अलिप्त रूप में विचरते हैं। और जो विरोध से मुक्त मूढ़ता बिना के विषमता में अखण्ड मुख कान्ति वाला और अखण्ड गुण समूह वाला है। वे विस्तृत यश समूह वाले विजयी हैं। शिष्यों की हित-शिक्षा का प्रारम्भ किया है। फिर भी यह वर्णन करते विषय का प्रसन्न चित्त वाला हे सूरि जी ! तुम भी एक क्षण सुनो। साध्वी और स्त्री संग से दोष :-हे अप्रमत्त मुनियों ! तुम अग्नि और जहर समान साध्वियों के परिचय को छोड़ो, क्योंकि-साध्वियों के परिचय वाला साधु शीघ्र लोकापवाद को प्राप्त करता है। वृद्ध, तपस्वी, अत्यन्त बहुश्रुत और प्रमाणिक साधु को भी साध्वी के संसर्ग से अपवाद-निन्दा रूपी दृढ़ वज्र का प्रहार होता है, तो फिर युवावस्था, अबहुश्रुत, उग्रतप बिना को और शब्दादि विषयों में आसक्त साधु जगत में निन्दा का पात्र कैसे नहीं बन सकता ? जो साधु सर्व विषयों से भी विमुक्त और सर्व विषयों में आत्मवशस्वाधीन हो वह भी साध्वियों का परिचय वाला अनात्मवश-चेतना शक्ति खो बैठता है। साधु के बन्धन में, साध्वी के समान लोक में दूसरी उपमा नहीं है, अर्थात्, साध्वी उत्कृष्ट बन्धन रूप है, क्योंकि अवसर मिलते ही वे रत्न त्रयरूपी भाव मार्ग से गिराने वाली है, यद्यपि स्वयं दृढ़ चित्त वाला हो तो भी अग्नि के समीप में जैसे घी पिघल जाता है, वैसे सम्पर्क से परिचित बनी साध्वी में उसका मन रागी बनता है। इसी तरह इन्द्रिय दमन गुण रूप काष्ट को जलाने में अग्नि समान शेष स्त्री वर्ग के साथ में भी संसर्ग को प्रयत्नपूर्वक दूर से ही त्याग करना। विषयांध स्त्री कुल को अपने वश को, पति को, पुत्र को, माता को और पिता को भी नहीं गिनकर उसे दुःख समुद्र में फेंकता है। स्त्री रूपी सीढ़ी द्वारा नीच पुरुष भी गुणों के समूह रूपी फलों से शोभित शाखा वाला मान से उन्नत पुरुष रूपी वृक्ष के मस्तक पर चढ़ता है, अर्थात् अभिमानी गुणवान् पुरुष को भी स्त्री सम्पर्क से नीच भी पराभव करता है। जैसे अंकुश से बलवान हाथियों को नीचे बैठा सकते हैं, वैसे दुष्ट स्त्रियों के संसर्ग द्वारा अभिमानी पुरुषों को भी अधोमुख-हल्के तुच्छ कर सकते हैं । जगत में पुरुषों ने स्त्रियों के कारण अनेक प्रकार के भयानक युद्ध हुये हैं, ऐसा महाभारत, रामायण आदि ग्रन्थों में सुना जाता है। नीचे मार्ग में चलने वाली, बहुत जल
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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