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________________ ॐ ॐ अहं नमः॥ ॥ नमोऽस्तु श्री जिन प्रवचनाय ॥ श्री आत्मवल्लभ ललित पूर्णानन्द प्रकाशचन्द्र सूरि सूरिभ्योः नमः श्री जिनचन्द्र सूरीश्वर प्रणीत श्री संवेगरंगशाला अर्थात् (बैराग्यरंग की नाट्य भूमि या नाट्यशाला) भावानुवाद ग्रन्थकार का मंगलाचरण रेहइ जेसि पयनह परंपरा उग्गमन्तरविरूइरा। नमिरसुरभउङ संघट्ट, खुडियवर रयण राइत्व ॥१॥ अहव सिवपहपलोयणमणहत्थप्पई वपंतित्व । तिहुयण महिए ते उसभप्पमुह तित्थाहिवे नमह ॥२॥ अर्थात् उदय हुए सूर्य की कान्ति समान, लालवर्णयुक्त, नमस्कार करते हुए देवताओं के मुकुट के संघट्ट (स्पर्श) से गिरे हुए रत्नों की सुशोभित श्रेणी सदृश निर्मल तथा मोक्ष मार्ग की खोज करने की इच्छा वाले भव्य जीवात्मा के हाथ में दीपक श्रेणी समान, तेजस्वी, शोभायमान, पैर के नखों की श्रेणी वाले, तीन जगत के पूजनीय, श्रीऋषभदेव परमात्मा को और अन्य तीर्थंकर भगवन्तों को हे भव्य प्राणियों ! नमस्कार करिये। अज्जविय कुतित्थिहत्थि सत्थमच्यत्थमोत्थरइ जस्स । दुग्गनयवग्गन हनिवहं भोसणो तित्थमयनाहो ॥३॥ तं नमह महावीरं, अणंतरायं पि परिहरिय रायं। सुगयंपि सिवं सोम पि चत्तदोसोदयारम्भं ॥४॥ अर्थात् महामुश्किल से जिसे समझ सके ऐसे दुर्गम नयवाद रूपी नख के समूह से भयंकर जिसका तीर्थ-शासनरूपी सिंह आज भी अन्य मतावलम्बी रूपी हाथियों के समूह को अत्यन्त आक्रमण करता है ऐसे श्री भ्रमण भगवान
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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