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________________ १६६ श्री संवेगरंगशाला ६. निमित्त द्वार:-पृथ्वी विकार आदि आठ प्रकार के श्रेष्ठ निमित्त द्वार को भी सामान्य रूप से कहता हूँ। जिसको चलते, खड़े रहते, बैठते अथवा सोते निमित्त बिना भी उस भूमि में वह दुर्गंधमय या ज्वालाएँ दिखें अथवा भूमि फटे, चकनाचूर हो अथवा करुणा आक्रन्द का रुदन का शब्द सुनाई दे इत्यादि सहसा अन्य भी कोई भूमि विकार दिखे तो छह महीने में मृत्यू होती है। अपनी दृष्टि भ्रम से जो अन्य के केश में धुआँ या अग्नि का तिनका यदि प्रगट हुआ देखे तो देखने वाला शीघ्र मर जाता है। और कुत्ते की हड़ी या मतक के अवयव को घर में रखे तो भी मरण होता है। और इस ग्रन्थ में पूर्व में उद्यत विहार में राजा को भी आराधक रूप में बतलाया है, इससे उसके निमित्त को भी कई उत्पातों से कहा है। यदि बाजे बजाये बिना भी शब्द हो, अथवा बजाने पर भी शब्द न हो, पानी में और हरे फलों के गर्भ में अग्नि प्रगट हो अथवा बिना बादल वृष्टि हो तो राजा का मरण होगा, ऐसा जानना । इन्द्र ध्वज, राज्य ध्वज, तोरण द्वार, महल का दरवाजा, स्तम्भ या दरवाजे का अवयव आदि यदि सहसा टूटे-गिरे तो वह भी राजा की मृत्यू बतलाता है। यदि सुन्दर वृक्षों में अकाल में फल-फूल प्रगट हुए दिखें अथवा वह वृक्ष ज्वाला और धुआँ छोड़े, ऐसा दिखे तो शीघ्र राजा का वध होने वाला है। यदि बादल रहित निर्मल आकाश में रात्री या दिन में इन्द्र धनुष्य को देखे तो लम्बा आयुष्य नहीं है, आकाश में गीत का शब्द सुना जाये तो रोग आयेगा, और बाजे की आवाज सुनाई दे तो निश्चित मृत्यु होगी। यदि पवन की गति और स्पर्श को नहीं जान सकता अथवा विपरीत जाने अथवा दो चन्द्र को देखे तो उसे मृत्यु की तैयारी वाला जानना । गुदा, तालू, जीभ आदि में निमित्त बिना अचानक दुष्ट प्रगट रूप में फंसी आदि बहुत अधिक दिखाई दें तो शीघ्र मृत्यु आई है, ऐसा जानना । जिसने निमित्त बिना ही जीभ के अन्तिम भाग में पहले कभी नहीं देखा ऐसा काला बिन्दु देखे तो वह भी एक महीने के अतिरिक्त नहीं जीयेगा । अथवा कर्मवश के कारण जिसका बड़ा अथवा सुन्दर भी, स्वर बिना कारण अचानक हुआ हो, किसी तरह निश्चय मूल स्वभाव से अति नीचा, मन्द पड़ गया हो अथवा महाउग्र बन गया हो अथवा जिसका स्वर अति करुणा वाला दीनता या कठोरता युक्त दीखे, अथवा आवाज पकड़ी जाए, तो वह मनुष्य भी निःसन्देह अन्य शरीर को प्राप्त करता है अर्थात् वह मर जाता है। जो उत्तम पुरुष को कपाल विभाग में अति लम्बी और स्थूल एक, दो, तीन, चार या पाँच रेखाएँ होती हैं वह अनुक्रम से तीस, चालीस, साठ, अस्सी और सौ वर्ष तक सुन्दर जीवन जीता है। जिस पुरुष का समग्र शरीर निमित्त बिना
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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