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________________ ( iv ). २६४ २६६ ३०१ ३०२ .. • ३०३ ... छठा उपसंपदा द्वार सातवां परीक्षा द्वार आठवां पडिलेहणा द्वार हरिदत्त मुनि की कथा २६७ नौवा पृच्छा द्वार दसवां प्रतीच्छा द्वार तृतीय ममत्व विच्छेदन मूल द्वार उसमें प्रथम आलोचना विधान द्वार ३०३ आलोचना कब देनी ३०४ आलोचना किसकी देनी ३०४ आलोचना लेने वाला कैसा होता है ३०५ आलोचक के दस दोष ३०६ आलोचना नहीं देने से दोष ३०६ ब्राह्मण पुत्र की कथा ३१० आलोचना पर साक्षी में करे ३११ आलोचना के गुण ३१२ आलोचना किस तरह दे ३१४ उसकी सात मर्यादा ३१४ क्या-क्या आलोचना करे ३१६ गुरु आलोचना किस तरह दे ३१८ प्रायश्चित क्या देना ३१६ आलोचना का फल ३२० सुरतेज राजा का प्रबन्ध ३२१ अवन्ती नाथ और नर सुन्दर की कथा दूसरा शय्या द्वार ३२८ दो तोतों की कथा तीसरा संस्तारक द्वार भाव संथारा ३३१ शुद्ध और अशुद्ध संथारा ३३२ अग्नि संथारे पर गजसु कुमार की कथा ३३३ जल संथारे पर अणिका पुत्र आचार्य की कथा चौथा निर्यामिक द्वार पांचवा दर्शन द्वार छट्ठा हानि द्वार सातवां पच्चचखान द्वार आठवां क्षमापना द्वार नौवा स्वयं क्षमणा द्वार चन्द्ररूद्राचार्य की कथा चौथा समाधि लाम द्वार उसमें प्रथम अनुशासित द्वार अट्ठारह पाप स्थान के नाम ३५० प्राणी वध ३५१ सासु बहु और पुत्री की कथा ३५३ मृषावाद द्वार ३५६ वसुराजा और नारद की कथा ३५६ अदत्तादान द्वार ३६१ श्रावक ३२२ ३२८ " ३३४ ३३६ ३४० ३४२ ३४४ ३४५ ३४६ ३४६ ३५०
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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