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________________ १७२ श्री संवेग रंगशाला सामर्थ्य न हो तो साधारण को खर्च करके भी उसकी चिन्ता सार सम्भाल करे । केवल साधारण द्रव्य के खर्चने के दस स्थान बतलाये हैं । वह इस प्रकार । 1 हैं साधारण द्रव्य खर्च के दस स्थान :- - (१) जैन मन्दिर, (२) जैन बिम्ब: (३) जैन बिम्बों की पूजा, (४) जैन वचनयुक्त जैनागमन रूप प्रशस्त पुस्तकें, (५) मोक्षसाधक गुणों के साधने वाले साधु, ( ६ ) इसी प्रकार की साध्वी, (७) उत्तम धर्मरूपी गुणों को प्राप्त करने वाले सुश्रावक, (८) इसी प्रकार की सुश्राविकाएँ, (६) पौषधशाला उपाश्रय, और (१०) इस प्रकार का सम्यग्दर्शन IT शासन संघ आदि किसी प्रकार का धर्म कार्य हो तो उसमें ये दस स्थानक में साधारण द्रव्य को खर्च करना योग्य है । उसमें जैन मन्दिर में साधारण द्रव्य को खर्च करने की विधि इस प्रकार की - 1 १. जैन मन्दिर :- सूत्रानुसार अनियत विहार के क्रम से नगर, गाँव आदि में अनुक्रम से मास कल्प, चौमासी कल्प से या नवकल्पी विहार से विचरते, द्रव्य, क्षेत्र, काल में भाव आदि में राग रहित, साधु तथा व्यापार अथवा तीर्थयात्रा के लिए गाँव, आकार, नगर आदि में प्रयत्नपूर्वक परिभ्रमण करते आगम रहस्यों को जानकार तथा श्री जैन शासन के प्रति परम भक्ति वाला श्रावक भी जाते हुये रास्ते में गाँव आदि आये तो जैन मन्दिर आदि धर्म स्थानक जानने के लिए गाँव के दरवाजे पर किसी को पूछ ले। और उसके कहने से वहाँ 'जैन मन्दिर आदि हैं' ऐसा सम्यग् रूप जानकारी हो तब हर्ष के समूह से रोमांचित शरीर वाला वह विधिपूर्वक उस गाँव आदि में ये । यदि स्थिरता हो तो प्रथम ही वहाँ चैत्य वन्दन आदि यथोक्तव विधि करके जैन मन्दिर में टूट-फूट आदि देखे, और उत्सुकता हो तो संक्षेप से भी वन्दन करके उसके टूटे हुये भाग को देखे और विशेष टूटा-फूटा हो तो उसकी चिन्ता करे | अपनी सामर्थ्य हो तो श्रावक ही करे। मुनि भी निश्चय ही उस सम्बन्धी उपदेश देकर यथायोग्य चिन्ता करे । अथवा स्वदेश में अथवा परदेश में अच्छेचारित्र पात्र अन्य लोगों से भरा हुआ भी श्रावक बिना का हो, अथवा वहाँ के श्रावक धन आदि से अति दुर्बल हों, परन्तु रहने वाले अन्य मनुष्य पुण्योदय से चढ़ते कला वाले हों, ऐसे गाँव, नगर आदि स्थानों में जो जैन मन्दिर जीर्णशीर्ण हों अथवा दिवाल आदि का सन्धि स्थान टूट गया हो, या दरवाजे, देहली आदि अति क्षीण हो गये हों, उसके उपदेशक मुनियों के अथवा अन्य लोगों के मुख से सुनकर अथवा ऐसा किसी भी, कहीं पर भी देखकर श्री जैन
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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